ब्लेम…ब्लेम…ब्लेम स्टॉप…स्टॉप…स्टॉप
एक प्रतियोगिता में आप एक गलती कर देते हैं और हार जाते हैं, आपके शिक्षक ने आपको बिना किसी गलती के डांट दिया था और आप खुद को सही साबित नहीं कर पाए थे, आपकी गलती से आपके भाई को कैरियर में बहुत नुकसान हो गया, आपके बॉस ने आपकी सभी एम्प्लाइज के सामने बेइज्जती करदी…आदि आदि। अब हम बार बार उस घटना को याद करते हैं और खुद को उसमें जिताने के लिए व्यूह रचते, चालें सजाते हैं। हम खुद को बताना चाहते हैं कि मैं यह कहता तो वह चुप हो जाता, मैं वह न करता तो मेरे भाई का कैरियर आज कुछ और ऊंचाई पर होता, मैं यह करता तो मेरी जगह बॉस की बेइज्जती हो जाती…आदि आदि। आप खुद को जीताना चाहते हैं, क्योंकि हार हमें स्वीकार नहीं और हम यह भूल जाते हैं कि वह तो पास्ट था जो कि पास्ट है और वह अब कभी नहीं आएगा। ऐसी ही ज़िन्दगी की कई घटनाएं जो हमें बार बार हारा हुआ मासूम योद्धा और दूसरों को क्रूर विजेता बताती हैं। आप खुद को और दूसरों को दोष देने लगते हैं। आपका यह दोष देना आपके लिए घातक है। यह आपके विकास को रोकता है, आपको दुःखी रखता है, आपकी खुशियों को नष्ट करता है, आपके मित्रों और रिश्तों को खत्म करता है। प्रिय पाठकों दोषारोपण या ब्लेम आपके लिए किसी भी एंगल से फायदेमंद नहीं है…न खुद पर और न दूसरों पर।
यदि आपको जीवन में विकास करना है और खुश रहना है तो खुद को और दूसरों को दोष देना बंद कीजिए, बंद कीजिए ये रोतलु पन, बंद कीजिए दूसरों से उम्मीद लगाना, बंद कीजिए ये रिश्तों और मित्रता का कत्ल करना।
आप क्या करें- दोष देने की जगह उन घटनाओं से कुछ सीखें और उसे बना लें अपना अनुभव। जब आपके सामने ऐसी ही स्थिति भविष्य में वापस आये तो आप फिर गलती न करें। यह दोषारोपण या ब्लेम करने की जगह ज्यादा अच्छा और लाभदायक सिद्ध होगा क्योंकि अनुभव आपको विजेता या सफल बनाते हैं। जब अनुभव आपके पास होंगे तो आप दोषी की जगह अनुभवी व्यक्ति बन जाएंगे तथा अनुभवी व्यक्ति खुश, सफल और स्वस्थ होते हैं।