क्या ग़लत कामों से शाँति मिल सकती है

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वह शायद मेरे क्लीनिकल प्रैक्टिस का दूसरा बसंत होगा। दबंग से दिखने वाले गाँव के एक रोगी मेरे पास आये। उनके पैर में एक नासूर बन गया था। वे उससे लगभग दो साल से परेशान थे। उन्हें शुगर नहीं थी और चिकित्सकों को उसकी वजह कभी पता नहीं चली। मैंने पूछा कि आपको क्या लगता है कि क्यों हुआ आपको यह ज़ख़्म? उन्होंने फ़ौरन जवाब दिया, “डॉ साहब यह मेरे पाप की सज़ा है, जो मुझे दी है ईश्वर ने। जब मैं गांव का सरपंच था, मुझे बताया कुछ चुगलखोरों ने कि मेरे खिलाफ गाँव का एक गरीब व्यक्ति कुछ अपशब्द कह रहा था (जबकि उसने कुछ नहीं कहा था)। मैं उसके खेत पर गया, उस वक़्त वह खाना खा रहा था, मैंने उस बेचारे और उसके दस या बारह साल के बच्चे को एक एक ठोकर मारी इसी पैर से, जिससे वे खाना खाते खाते लुढ़क कर दूर गिर गए। वे बेचारे कुछ समझते इससे पहले ही मैंने उन्हें बहुत सी गालियां दीं। वे बिना कुछ प्रतिक्रिया दिए ज़मीन पर ही बैठे रहे और उल्टे मुझसे ही माफी मांगते रहे। उनके खाने की थाली भी दूर गिर गई थी। मेरे साथ गए हुए लोग बहुत खुश हुए। मेरा भी घमंड कुछ शांत हुआ। लेकिन मैं जानता था कि मैंने गलत किया है। मेरी सरपंची खत्म होने से पहले ही मुझे यह ज़ख़्म हुआ उसी पैर में जिससे मैंने उन मासूमों को ठोकर मारी थी। यह मेरा राक्षसी कर्म मुझे भुगतना ही है डॉ. साहब… शायद जीवनभर।”

ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जिनमें लोग क्षणिक आनंद के लिए गलत काम करते हैं और पश्चाताप की आग में जीवन भर तपते और सुलगते रहते हैं। वे सरपंच जी आश्चर्यजनक रूप से ठीक तभी हुए जब उन्होंने उस गरीब व्यक्ति और उसके बच्चे से माफी मांग ली और उन मासूमों ने उन्हें फ़ौरन बिना शर्त माफ़ भी कर दिया। यह मेरे प्रैक्टिस का वह बेहतरीन और हैरतअंगेज़ केस था जिसमें कि रोगी का शारीरिक घाव जो कि मानसिक वेदना से उत्पन्न हुआ था और मानसिक शांति से ही ठीक हुआ था। इसने मुझे सोचने पर मजबूर किया कि चिकित्सा केवल वही नहीं है जो किताबों में लिखी है और जो चिकित्सा-महाविद्यालयों में पढ़ाई जाती है। चिकित्सा तो मन और शरीर को स्वस्थ करने का नाम है।

दंगों, फसादों, लूट, डकैती, मारकाट, तोड़फोड़, जानवरों की निर्मम हत्या, बलात्कार, परिवार वालों के साथ क्रूर बर्ताव करने वाले कभी खुश और सेहतमंद नहीं रह सकते। वे अंदर से सड़े हुए होंगे। वे अकड़ते हुए चाहे चलते हो लेकिन उनकी आत्माएं पाप के बोझ तले झुकी हुई होगी।

आपके साथ भी यदि ऐसे ही बुरे कर्मों का साथ लग गया है और अशांति जीने नहीं दे रही है तो आप क्या करें? आप सबसे पहले यदि मुम्किन हो तो पीड़ितों से क्षमा मांग लें, फिर आगे से ऐसे गलत कार्यों को करने से तौबा कर लें, और बुरे कामों के बदले अच्छे काम करने लगें क्योंकि आपके पुण्य आपके पापों (गुनाहों) को धो देते हैं। यह सब बहुत ज़रूरी है मन की शांति के लिए… यह नेक कार्यों की शक्ति उतनी ही सच है जितनी कि गुरुत्वाकर्षण की शक्ति। दोनों आपको दिखाई नहीं देंगे लेकिन दोनों को आप महसूस कर सकते हैं।

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