अब जल ही (×जीवन×) मृत्यु है

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यह धरती 70% जल युक्त है और उसी तरह हमारा शरीर भी 70% जल से ही बना है। जल का बहुत ज़्यादा महत्व है। लगभग सभी धर्मों ने जल को बहुत महत्व दिया है। हिन्दू धर्म में जल के प्रबंधन के लिए देवराज इंद्र ने स्वयं को नियुक्त किया है तो इस्लाम और ईसाईयत में इस हेतु विशेष फरिश्तों की नियुक्ति अल्लाह ने बारिश के लिए की है। जल ही जीवन है, यह अब भी सत्य है लेकिन अब वह जानलेवा भी हो गया है। हम सबने मिलकर जल को ज़हरीला बना दिया है। अब यह जल लगभग 60,000 से ज़्यादा ज़हरीले केमिकल्स से युक्त हो चुका है जिसमें कई जानलेवा कैंसरकारक तत्व भी शामिल हैं। पानी में अब कई घातक बैक्टीरिया, प्रोटोज़ोआ और वायरस भी हैं। कई जलस्रोतों में सुपरबग भी काफी मात्रा में पाई गई हैं। पीलिया, टायफॉइड, ज़िआर्डियासी, अमीबीएसिस आदि जल से होने वाले सामान्य रोग हैं लेकिन अब कैंसर, किडनी फेलियर जैसे रोग भी पानी से हो रहे हैं। लेड और आर्सेनिक जैसे घातक मेटल्स भी अब पीने के पानी में आम है।

खेती में उपयोग किये जाने वाले कीटनाशक और पेस्टीसाइड भी बारिश में रिसकर नदी, तालाब, पोखर और झीलों के पानी में मिलकर स्थिति को और घातक बना रहे हैं। उद्योगों से निकलने वाले कचरे बेधड़क पानी में मिलाएं जा रहे हैं और सभी जीवों को नष्ट करते जा रहे हैं… कचरे से मृत्यु या यूं कहें कि कचरे से ‘मास जीनोसाइड’ हो रहा है।

अस्पतालों से निकलने वाले वेस्ट भी पानी में मिल रहे हैं और न चाहते हुए भी लोग दवाओं के अंश पानी के साथ पी रहे हैं, जिसमें प्रमुख हैं एंटीबायोटिक, पैनकिलर्स, स्टेरॉइड और हार्मोनल मेडिसिन। एंटीबायोटिक पानी में घुलकर बैक्टेरिया को रेसिस्टेंट करके पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी बजाने वाली सुपरबग पैदा कर रही हैं। हमारे नलों से आने वाला पानी हमें बीमारियों की खान बना रहा है। पानी कितना जानलेवा हो गया है यदि यह आपको विस्तार से जानना है तो आपको आंखों को खोलकर रख देने वाली रॉबर्ट मोरिस की किताब “द ब्ल्यू डैथ” अवश्य पढ़ना चाहिए।

म्युनिसिपल के नलों से आने वाले पानी की इतनी बुराई सुनकर आप यदि धनी हैं तो बॉटल बंद पानी खरीदने के बारे में सोच रहे होंगे। लेकिन याद रहे दोस्तों कि पैसों से खरीदी गई हर चीज लाभदायक हो यह ज़रूरी नहीं है। हर महंगी चीज अच्छी होती है, यह एक भ्रांति है। आज हर अमीर गरीब बॉटल का पानी खरीदकर पीता है ज़िन्दगी में कभी न कभी…अक़्सर सफर में। कई शोधों में पता चला है कि बोतलबंद पानी में एक घातक रसायन पाया जाता है जिसका नाम है – बिस्फेनॉल ए (BPA)। रिसर्च बताती हैं कि इसे पीने से बच्चों के दिमाग का विकास रुक जाता है और व्यवहार संबंधित समस्याओं से वह ग्रस्त हो जाता है। 2010 के ह्यूमन रिप्रोडक्शन जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक एक वर्ष से अधिक BPA युक्त पानी पीने वाले पुरुषों में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (नपुंसकता) का जोखिम चार गुना बढ़ जाता है और सेक्स में उनका रुझान घट जाता है। अमेरिका में बिकने वाले 93% बोतलबंद ब्रांडेड पानी में BPA पाया गया है। हमारे देश में जागरूकता के अभाव में ऐसे रिसर्च कम ही होते हैं और अगर हो तो उसके परिणाम आप समझ ही सकते हैं कि कितने चौंकाने वाले होंगे। तो बोतलबंद पानी से भी उम्मीद न रखें।

मेरे अनुसार इस धरती पर सबसे शुद्ध पानी बारिश का पानी है क्योंकि यह वाष्पीकरण के द्वारा शुद्ध होकर बादलों में जमा होकर बरसता है इसलिए जितना ज़्यादा हो इसी का सेवन करें। बारिश का पानी न होने पर नल का पानी बेहतर है। इसके लिये आप प्यूरीफायर का प्रयोग कर सकते हैं। इसमें भी कार्बनब्लॉक फ़िल्टर और रिवर्स ऑस्मोसिस वाले बेहतर हैं। पानी को फिल्टर से निकालकर मिट्टी के मटके में रख दें ताकि मिट्टी के मिनरल्स उसमें मिल जाएं। पानी को पीने से पहले उसमें नींबू के रस की 2 बूंद मिलाकर 2 मिनट के लिए रख दें इससे भी बहुत सी अशुद्धि नष्ट हो जाती है और हमें बेहद ज़रूरी विटामिन सी भी मिल जाता है।

पानी कितना और कब पियें-

इंटरनेट पर अगर आप यह सवाल पूछेंगे तो वह हज़ारों परिणाम आपके सामने खोल देगा। कोई कहेगा शरीर के वज़न का इतना भाग लीजिए, कोई 5 लीटर, कोई 4 लीटर, कोई 6 औंस कोई 7 औंस…आदि, आदि। वे सही भी हैं लेकिन आप कब पानी पियें और अभी जो मात्रा पी रहे हैं वह काफी है या नहीं वह भी जान सकते हैं-

● सबसे पहले तो देख लें कि क्या आपके होंठ और मुंह सूख रहे हैं, यदि हाँ, तो आपको पानी अभी फौरन पीना चाहिए।

● दूसरा यह देखें कि आपके यूरिन का रंग कैसा है गाढ़ा पीला या मटमैला। यदि हाँ, तो आप अभी जितना पानी पी रहे हैं वह कम है। यदि यूरिन का रंग सामान्य हल्के पीले रंग का है तो आपके द्वारा पी जाने वाली पानी की मात्रा ठीक है।

● कमज़ोरी महसूस हो और पानी पीने से वह कुछ ही मिनट में दूर हो जाए तो इसका मतलब है कि आप पानी ज़रूरत से कम पी रहे हैं।
पानी को देखकर मुंह में पानी आ जाए तो भी समझ लीजिए कि अभी आपके शरीर में पानी की कमी है।

पुनश्च: डिहाइड्रेशन जानलेवा और नाकाबिले बर्दाश्त होता है इसीलिए जब प्यास लगे तो पहला कदम तो उपलब्ध पानी पीने का ही हो लेकिन फिर उसके बाद दूसरा कदम स्वच्छ पानी तलाशने का हो। आप हर वीकेंड पर घूमने जाते हैं। मैं चाहता हूँ कि एकबार आप अपने शहर के वॉरप्लांट भी देखने जाएं और पड़ताल करें कि आपको शुद्ध पानी कैसे दिया जा रहा है। आप नेताओं से हॉस्पिटल बनाने की मांग करते हैं लेकिन इसबार उनसे शुद्ध पानी की मांग कीजिए ताकि आप बीमार पड़े ही ना और हॉस्पिटल की ज़रूरत कम से कम पड़े…क्योंकि शुद्ध जल पाने के लिए उसे पीने वाले का जागरूक होना पहली शर्त है।

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