नेगेटिव न्यूज़ को कहें ना
आज का युग खबरों का युग है। सैकड़ों न्यूज़ चैनल और हज़ारों की तादाद में अख़बार आज हमारे देश में प्रसारित एवं प्रकाशित होते हैं। टीआरपी का यह युग है, अर्थात् जिस चैनल को या अख़बार को जितनी अधिक टीआरपी या पाठक संख्या, उसके उतने ही ज़्यादा विज्ञापन देने वाले ग्राहक और जितने विज्ञापन उतनी ज़्यादा कमाई। हमें यह याद रखना चाहिए कि मीडिया चैनल या अख़बारों के लिये खबर एक व्यापार है और व्यापार में लाभ ही एकमात्र उद्देश्य होता हैं। लाभ के लिये मीडिया सनसनी रचता है, डर रचता है, ख़ौफ रचता है, रोमांच रचता है, ताकि ज़्यादा से ज्यादा दर्शक या पाठक आकर्षित हो। सुबह उठते ही हम पेपर पढ़ते हैं और रात को सोते समय न्यूज़ चैनल देखकर सोते हैं, अर्थात दिन की शुरूआत भी खबरों से और दिन का अंत भी खबरों से।
मीडिया द्वारा दिखाई जाने वाली खबरों में लगभग 98% खबरें नकारात्मक होती हैं। लूट, हिंसा, युद्ध, भ्रष्टाचार, बलात्कार, विस्फोट से चैनल सने होते हैं। हम रोज़ाना जब यही पढ़ते हैं और देखते हैं तो हमें यह यकीन हो जाता है कि सबकुछ ठीक नहीं है, हर तरफ बुराई फैली है, हर तरफ केवल नकारात्मकता है। यह सब हम इसलिये सत्य मान लेते हैं क्योंकि हमारा दिमाग इसी प्रकार पप्रोग्राम्ड है कि जों बातें इसे बार-बार सुनाई, दिखाई या पढ़ाई जाएगी, यह उसे सच मान लेगा। आप बार-बार इसे कोई नकारात्मक चीज़ दिखाएंगे तो यह नकारात्मकता को ही सत्य मान लेगा।
हमारे देश में अधिकांश देशवासी 6 से 8 न्यूज़ चैनल देखते हैं और 15 से 20 न्यूज पेपर में से एक या दो पढ़ते हैं। यानि कुल 20 से 30 मीडिया परिवार मिलकर हमारी सोच और हमारी विचारधारा को नियंत्रित कर सकते हैं, और कर रहे हैं। कितना घातक है ये कि कुछ गिनती के लोग हमारी सोच, हमारी विचारधारा को नियंत्रित कर रहे हैं। हमारी नकारात्मकता में वृद्धि हो रही है इसे हम एक उदाहरणों से समझते हैं –
आप आज बारिश में भीगने का आनंद ले रहे हैं अपने जीवनसाथी या बच्चों या मित्रों के साथ खूब मज़े, खूब आनंद के साथ। फिर आप रात को घर आकर टीवी खोलते हैं तो न्यूज आती है कि आज बिजली गिरने से 10 लोगों की मौत हो गई। फिर सुबह पेपर पढ़ते हैं तो उसमें भी अलग-अलग जगह बिजली गिरने से हुई मौतों की खबरें होती हैं। अब आप थोड़ा डरना शुरू होते हैं, बारिश से। ऐसे करते-करते बारिश के शुरूआत के एक महीने में कुल 8 से 10 खबरें आप बिजली गिरने की पढ़ते हैं तो अब आपका मन इसे एक आम सत्य मान लेता है और अब आप बारिश में भीगने या आनंद लेने या मौजमस्ती करने से डरने लगते हैं और धीरे-धीरे खबर-दर-खबर आपका यह डर बढ़ने लगता है और आप बिजली के डर के रोगी बन जाते हैं।
नकारात्मकता का डोज़ हमें रोज़ाना मीडिया के माध्यम से पिलाया जा रहा है और हम हर छोटी-छोटी बात से खौफज़दा हैं। हम डरे हुए हैं और फोबिया से मानसिक रोगी बनते जा रहे हैं। हम भीड़ से डरते हैं, हमें मासूम जानवरों से डर लगने लगता हैं, हम बारिश और छोटी-मोटी आँधियों से डरने लगे हैं, हम इंसानों से डरने लगे हैं, हम दूसरे धर्म या जाति के लोगों से डरने लगे हैं… संक्षेप में हम बहुत डरपोक होते जा रहे हैं।
मीडिया की नकारात्मकता से बचने के लिये क्या करें –
◆ सुबह उठकर ही अखबार पढ़ने से बचें, क्योंकि सुबह के समय हमारा मस्तिष्क सबसे अधिक संवेदनशील होता है। अखबार को दोपहर या शाम को पढ़ें।
◆रात में सोते समय न्यूज़ चैनल न देखें नहीं तो रात भर आपके विचारों में वही न्यूज़ घूमती रहेगी और यदि उससे नींद पूरी नहीं हुई तो समस्या और गंभीर हो जाएगी।
◆ नकारात्मक खबरों को न पढ़ें।
◆ केवल अपने काम की खबरों को ही ध्यान से पढ़ें बाकी खबरों को केवल सरसरी नज़र से पढ़ें या केवल हैडिंग पढ़कर छोड़ दें।
पुनश्च:- याद रखें दुनिया में यदि सभी ओर नकारात्मकता होती तो यह दुनिया कब की नष्ट हो चुकी होती। अब भी दुनिया सकारात्मकता बहुल है…. अच्छाई ज़्यादा है और बुराई नाममात्र की है-वास्तविकता में, लेकिन न्यज़ चैनल इसका विपरीत दिखाते हैं, क्योंकि खबरों की दुनिया में यही बिकता है मेरे प्रिय पाठकों।