नेताओं के हथकंडे और लालची वोटर्स

June 13, 2018 by Dr. Abrar Multani
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शायद वह पिछले साल का सावन का महीना था जब मेरे एक रोगी जो कि भोपाल से दूर एक गांव के भूतपूर्व बुज़ुर्ग सरपंच थे। वे मुझसे अपनी कुछ समस्या के समाधान के लिए परामर्श लेने आए थे। उन्होंने बातों ही बातों में मुझे बताया था कि वह कैसे सरपंच के चुनाव में एक अमीर उम्मीदवार के सामने बिना पैसे बांटे जीते थे। उन्होंने बताया कि हमने गांव के कुछ परिवार को चिन्हित किया जो हमें वोट देने की बजाय हमारे विरोधी को वोट देने का मन बना रहे थे, लेकिन वे उसके कट्टर समर्थक नहीं थे। फिर रात में एक अंजान व्यक्ति को उस विरोधी का कार्यकता बनाकर हमने उन घरों में भेजा, हाथ में 50 हज़ार रुपये की गड्डी लेकर। दरवाजा खटखटाया और मुखिया से बात की कि कितने वोटर्स हैं आपके घर में? उसने जवाब दिया कि 10 हैं। हमारा आदमी उसके बताए अनुसार एक वोटर के 1000 के हिसाब से 10000 उसे गिनकर देने वाला होता था कि हमारे द्वारा पहले से तय एक आदमी दूर से आवाज़ लगाता था कि इसे मत दो, भाई साहब ( प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार का नाम लेकर) ने मना किया है कि यह भरोसेमंद आदमी नहीं है। अब रातभर वे लोग अपने पैसे जाने और खुद को गद्दार कहे जाने के गुस्से में सुलगते रहे और अपना वोट उसे न देने का मन बना लिया, और यह बहुत कारगार उपाय था, क्योंकि मनुष्य का मनोविज्ञान ही ऐसा है। हमने ऐसा किया रातभर और सुबह हमारे पास हमारे 50 हज़ार भी थे और विरोधी को जाने वाले लगभग 100 से 150 वोट भी हमारी झोली में आगए थे।

उन सरपंच साहब ने मुझे यह भी बताया था कि, ” ज़िन्दगी में हमेशा याद रखो कि जैसे मछली के दाने में उसकी पसंद का दाना ही डाला जाता है अपनी पसंद का गुलाब जामुन नहीं, बंदर को पकड़ने के लिये मूंगफली, भालू के लिए शहद और शेर के लिए मेमना…। वैसे ही लोगों को खरीदने के लिए भी अलग अलग चारा डालना पड़ता है- पैसा, डर, पद और सेक्स। यह इंसानों को फांसने के चारें हैं डॉक्टर साहब। जिसे जैसा चारा चाहिए वह पता करो, उनके सामने फेंको और राज करने लगो इन इंसानों पर जो कि किसी को अपना राजा बनाने के लिए हमेशा उतावले रहते हैं… मूर्ख और लालची इंसान।”

इस घटना से एक बात पता चलती है कि जैसे हम होते हैं वैसे ही हम अपने नेता चुनते हैं, क्योंकि आखिरकार हम हक़ीक़त में अपने प्रतिनिधि ही तो भेजते हैं। हम बिक जाते हैं इसलिए आगे जाकर हमारे नेता भी बिक जाते हैं। हम भ्रष्ट हैं इसलिए हमारे नेता भी भ्रष्ट हैं। चाहे हमें लगता हो कि हम भ्रष्ट नहीं है लेकिन भ्रष्टाचार का मूल हम ही हैं… देश को खा जाने वाली दीमक। अब बिकना छोड़िये, बिकने वालों को चुनना छोड़िये, और इस देश को वैसा बनाने में सहयोग कीजिए जैसा बनने का यह हक़दार है- महान और खुशहाल देश, दुनिया का सबसे अच्छा देश।

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