इस पर विचार ज़रूर करें
एक मजदूर एक बड़ा सा पत्थर तोड़ने के लिए उसपर हथोड़े से चोट करता है… एक, दो, तीन…और पचासवीं चोट में वह पत्थर टूट जाता है।
अब आप बताइये कि इस पूरी प्रक्रिया में किस नंबर की चोट सबसे महत्वपूर्ण थी जिससे वह चट्टान टूटी- पहली, दूसरी, दसवीं या फिर पचासवीं?
जी हां, इस पूरी प्रकिया में सभी चोटों का बराबर महत्व है। पहली का भी और पचासवीं का भी। यदि पहली चोट न लगती तो पचासवीं को कामयाबी नही मिलती। बीमारियों के साथ भी ऐसा ही है, हम पहले दिन दवाई खाते हैं, दूसरे दिन, तीसरे दिन…और फिर पचासवें दिन हमारी बीमारी खत्म हो जाती है। अब आप बताइए कि इनमें सबसे महत्वपूर्ण डोज़ कौनसा था- पहला,दूसरा, दसवाँ या पचासवाँ? अगर आप पहला डोज़ लोगे ही नही तो पचासवें का नंबर ही नही आएगा और आपका रोग ठीक नही होगा।
इसलिए रोगी रोग को ठीक करने के लिए थोड़ा सब्र रखे। प्रिय रोगियों पहले ही दिन जटिल रोग ठीक नही होते हैं। क्या आप 120 की स्पीड में दौड़ रहे ट्रक को एकदम ब्रेक मारकर रोक सकते हैं? नहीं, ना क्योंकि इससे एक्सीडेंट हो जाएगा। यदि जीवन मरण का प्रश्न नहीं होगा तो आप ऐसा कभी नहीं करेंगे। इसी तरह रोगों का भी है उन्हें एकदम दबाना या रोकने की प्रवृत्ति अप्राकृतिक है। रोग अपनी जटिलताओं के साथ आते हैं और शरीर से जाने में वक़्त लेते हैं, थोड़ा या ज्यादा। आचार्य चरक कहते हैं कि श्रेष्ठतम चिकित्सा वह है जिससे रोग जड़ से नष्ट हो और उस चिकित्सा से कोई नया रोग न उत्पन्न हो।
जटिल रोग को ठीक करने के लिए आयुर्वेद, होमियोपैथी, यूनानी या चाइनीज़ चिकित्सा पद्धतियों को थोड़ा समय दें और फिर रोग से मुक्त हो जाएं सदा के लिए। चिकित्सा चुनने का ज्ञान हर स्वस्थ और रोगी व्यक्ति को पता होना ही चाहिए, हमेशा स्वस्थ रहने के लिए।