दूसरों से उम्मीद दुख का मूल
‘‘यदि हम ख़ुद को या दूसरों को ख़ुश करने के लिए कुछ बनाते हैं, तो समझिये कि रेत पर किला बना रहे हैं, यदि हम ईश्वर के प्रेम की ख़ातिर बना रहे हैं तो चट्टान पर बना रहे हैं।’’ – ओस्वाल्ड चैम्बर्स
लोगों के दुःखी रहने का सबसे बड़ा कारण लोगों से आस लगाना है। पत्नी इसलिए दुःखी है कि वह दिनभर परिवार का ध्यान रखती है, लेकिन पति की दृष्टि में उसकी कोई कीमत नहीं है। पिता के दुःख का कारण यह है कि संतान को उनके बुढ़ापे का कोई ख़्याल नहीं है। मालिक को दुःख है कि कर्मचारी उसका एहसान नहीं मानते। ऐसे ही कई लोग हैं जो एक-दूसरे से उम्मीद या आस लगाए बैठे हैं और दुःखी हैं कि वह पूरी नहीं होती। ये उम्मीदें अगर हमें दुःखी करती हैं तो क्या किया जाए? इसके बारे में एक विद्वान का सिद्धांत यहाँ उल्लेखनीय है, ‘‘सुकून पाने का पहला सिद्धांत है कि हम अच्छे काम करें और लोगों से उसके बदले कोई उम्मीद न लगाएँ, उम्मीद सिर्फ़ और सिर्फ़ ईश्वर से ही लगाई जाए। अगर बदले में लोग आपसे अच्छा सुलूक कर लें तो इसे ईश्वर का वरदान समझें कि उसने आपके अच्छे कर्मों का फल धरती पर भी दे दिया।’’
गौतम बुद्ध के मुंह पर एक व्यक्ति ने थूक दिया, उन्होंने थूक को अपनी चादर से साफ करते हुए कहा कि” क्या तुम्हें और भी कुछ कहना है?” वह व्यक्ति स्तब्ध रह गया और बुद्ध के पैरों पर गिर कर बोला कि “मुझे क्षमा कर दी जिये, और मुझे अपने प्रेम से वंचित न करियेगा।” बुद्ध बोले कि “मैं तुमसे पहले इसलिए प्रेम थोड़े ही करता था कि तुम मुझ पर थूकते नहीं थे, मेरा प्रेम तुम्हारे थूकने पर निर्भर नहीं है वह तो इन सब से परे है, वह तो बिना किसी उम्मीद के है न अच्छी न बुरी।”
यदि आप भी पुरज़ोर सुकून और एक सुख की झील अपने आँगन में चाहते हैं, तो लोगों से उम्मीद बाँधना छोड़कर केवल एक ईश्वर से उम्मीद लगाएँ। विश्वास करें, यह सिद्धांत आपके जीवन में पुरज़ोर सुकून भर देगा, आपका ब्लड प्रेशर सामान्य रखेगा, आपकी अनिद्रा की समस्या को समाप्त कर देगा, शुगर, कॉलेस्ट्रॉल, यूरिया जैसे घातक तत्वों को शरीर में बढ़ने नहीं देगा, अल्सर, जोड़ों का दर्द और हृदय रोग को दूर रखेगा। यह सुकून यकीनन आपको दुनिया की किसी भी दवाओं या आराम से प्राप्त नहीं हो सकता। इसके बारे में सही व्याख्या वही कर सकता है जिसने वास्तव में ऐसा करके अपने हृदय में एक दिव्य अमृत भरा हो। हाँ, शायद आपने भी ऐसा कभी किया हो या प्रतिदिन ही ऐसा करते हों और यदि नहीं करते, तो आज से ही अपने कार्य ईश्वर को समर्पित कर दें। हाँ, इसका फल आप ही को तो मिलेगा।