कई बार रोगियों को दवाओं की नहीं परोपकार की ज़रूरत होती है
पिछले साल की बारिश में जब सभी ओर हरियाली ने आनंद घोल रखा था तभी एक युवक को उसकी पत्नी बेहद बीमार हालात में मेरे पास लाई। उसके चेहरे पर बारिश के आनंद और सुकून की कोई मुस्कान नहीं थी जो हम सभी महसूस कर रहे थे। वह युवक पिछले तीन महीनों से परेशान था- अपनी बेइंतहा कमज़ोरी, पेट की गड़बड़ और गिरते हुए वज़न से। 3 माह में 18 किलो वजन कम हो गया था उसका। पिछले 3 महीनों में वे 5 डॉक्टर बदल चुके थे और किसी को मर्ज समझ नहीं आया लेकिन दवाई सभी ने लिखी। यह भी अजीब चलन है आजकल के डॉक्टरों का कि बीमारी चाहे समझ ना आए लेकिन दवाई ज़रूर देंगे। खैर, मैंने उससे पूछा कि क्या कोई टेंशन या डर या समस्या है जो आपको खाए जा रही है? उसकी पत्नी ने फौरन जवाब दिया कि इनकी माँ के चले जाने के बाद से ही यह सब कुछ हुआ है इन्हें। न खाना ठीक से खाते हैं और न नींद लेते हैं, बस चुपचाप रहने लगे हैं…
मैंने यह सुनकर कहा कि इनकी बीमारी की वजह है इनकी माँ की कमी, बाकि इनके शरीर में न कोई बीमारी का वायरस घुसा है और ना कोई पोषकतत्व कम हुआ है। मैंने उस युवक से पूछा कि “अच्छा बताओ आपकी माँ की रूह को आपकी यह हालत देखकर कैसा महसूस होगा? क्या इससे उनकी रूह परेशान, दुःखी और बेचैन नहीं हो रही होगी? ठीक होने के लिए मेरी एक राय माने और अब आप एक काम करें कि एक बूढ़ी बेसहारा औरत के बेटे बन जाएं जिससे उसे बेटा मिल जाएगा और आपको एक मां। बस एक यही तरीका है आपकी प्यारी माँ की कमी को पूरी करने का।”
उसने मेरा कहना माना और एक अपनी दूर के रिश्ते की चाची को मां बना लिया। हफ़्ते दस दिनों में वह उनके पास जाता और उनकी कुछ मदद कर आता। ईद पर उनके लिए उसने कपड़े बनवाए और रमज़ान से पहले उनके यहाँ खाने के लिए अनाज भी रखवा दिया। वह खुश था और अपनी सभी सेहत की समस्याओं से भी परे जा चुका था। उसका वज़न फिर से 67 किलो हो गया था और चेहरे पर खुशियां लौट आई थी। इसबार की बारिश की रूमानी हरियाली ने उसे भी आनंदित किया और वह मैंने साफ साफ देखा जब वह मुझसे मिलने पिछले हफ्ते क्लीनिक आया था तब। अब मैं और वह जान चुके थे कि हर रोग का इलाज दवाई नहीं है… नेक कामों से भी हज़ारों रोग ठीक किये जा सकते हैं। ध्यान दें कहीं आप भी अपना इलाज परोपकार की जगह दवाओं में तो नहीं खोज रहे हैं।