शत्रु के बिना एकता असंभव है

August 21, 2018 by Dr. Abrar Multani
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एक बड़े से मकान में 4 भाई रहते हैं और उनके बच्चे भी। उन चारों में आपस में बिल्कुल नहीं बनती और वे एक दूसरे से हद दर्जे की नफरत करते हैं। उनके बीच सुलह की कई लोगों ने कोशिश की। सुलह के लिए पड़ोसी, रिश्तेदार, गुरु, धर्मगुरु … सभी ने जी तोड़ कोशिश की लेकिन नतीजा शून्य रहा। फिर एक रात में उनके घर पर दंगाइयों ने हमला कर दिया। पत्थर और लाठियों से उनके घर पर वे टूट पड़े। यह केवल 5 मिनट हुआ और पुलिस पहुंच गई, जिससे दंगाई भाग गए। इन 5 मिनटों में वे सभी भाई एक हो गए, उनमें एकता हो गई और उनके मनमुटाव मिनटों में खत्म हो गए। ऐसा क्या हुआ था उन पांच मिनटों में जो बरसों में नहीं हुआ था कि उन्हें एक कर दिया, सब गीले शिकवे भुलवा दिए। जी हाँ, शत्रु की उपस्थिति या एंट्री होते ही वे एक हो गए। शत्रु ने वह काम कर दिया जो कोई नहीं कर पाया था, बड़े बड़े गुरु भी नहीं।

एकता बिना शत्रु के हो ही नहीं सकती या मैं यह भी कह सकता हूँ कि शत्रु के बिना एकता का कोई औचित्य नहीं है। एकता विभाजन का मूल है। हम एक होते ही किसी के विरुद्ध हैं। हमारा एकत्व हमें किसी से दूर करता है या किसी को विरोधी बनाता है।

धर्म के अनुयायी हो या जाति सम्प्रदाय में बंटे लोग या किसी देश के वासी हो या किसी नेता के समर्थक एक तभी होंगे जब उनके सामने शत्रु होगा। एक देश के लोग यदि बहुत बंटे हुए हैं तो वे एक तभी होंगे जब कोई और देश उनका शत्रु बनकर उभर आए या उनके अस्तित्व पर ही खतरा बन जाए।

एक चतुर नेता, एक काय्या धर्मगुरु, एक चालाक नव सम्प्रदाय निर्माता इस तथ्य को जानता है कि उसके समर्थक को एक रखने के लिए शत्रु ज़रूर बनाता है या दिखाता है। यदि शत्रु न हुआ तो वे कोई काल्पनिक शत्रु अपने समर्थकों या अनुयायियों को दिखाता है। “हम बनाव वे” एकता निर्मित करने का सबसे सफल फॉर्मूला है जो काल और स्थान से प्रभावित न हुआ है न होगा।

पुनःश्च- मुझसे एक बार एक पत्रकार ने पूछा था कि तो क्या धरती के सभी मनुष्य इस फॉर्मूले के अनुसार कभी एक नहीं हो पाएंगे, क्या ‘वसुंधरा कुटुम्बकम’ का ख्वाब केवल एक किताबी बात है? मैंने कहा कि नहीं, धरती के सभी इंसान एक हो सकते हैं यदि धरती से बाहर का कोई शत्रु प्रकट हो जाए और उनके अस्तित्व को नष्ट करने पर उतारू हो जाए…तो हम सीमाएं, रंग, नस्ल, धर्म सब भूलकर एक हो जाएंगे।

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