जब मोबाइल आपको डराने लगे

August 24, 2018 by Dr. Abrar Multani
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याद कीजिए जब मोबाइल नहीं थे, लैंड लाइन भी नहीं के बराबर थे। उस वक़्त एक व्यक्ति विभिन्न जाति या संप्रदायों में संदेश वाहक होता था जो खबरें लेकर सभी जगह जाता था। वह व्यक्ति मृत्यु के संदेश भी लाता था और विवाह के भी। अगर वह एक ही महीने के अंदर कई शोक संदेश ले आता था तो लोग उसे मनहूस मानने लगते थे और उसे देखते ही डरने लगते थे कि “हे ईश्वर हमें बुरी खबर अब मत देना।” रोबर्ट ग्रीन अपनी किताब ’48 लॉज़ ऑफ पॉवर’ में शायद इसीलिए एक नियम शक्ति का यह भी बताते हैं कि आप लोगों को बुरी या मनहूस खबरें न सुनाए। उस शोक की खबर लाने वाले व्यक्ति को देखकर आपकी धड़कने बढ़ने लगती थी और दिल बैठने लगता था, पसीना निकलने लगता था और पूरे शरीर में झुनझुनी होने लगती थी…।

अब संदेश वाहक की जगह मोबाइल फोन ने लेली है। अब सारे संदेश मोबाइल ही लेकर आता है। आपकी एकाउंट डिटेल, ट्रांज़िक्शन, नौकरी की सूचना, सेलेक्ट या रिजेक्ट होने की सूचना सब कुछ मोबाइल पर ही आती हैं। अगर आप रात में किसी के एक्सीडेंट या मृत्यु की खबर सुनते हैं और यह कई बार होने लगता है तो आपका मस्तिष्क उन्हें अपनी स्मृति में सुरक्षित कर लेता है और फिर मोबाइल की घंटी बजते ही आपके दिल की धड़कनें बढ़ने लगेंगी, पसीना आने लगेगा, सांस फूलने लगेंगी, नींद उड़ने लगेगी…। अगर आपको किसी ने धमकी दी हो या ब्लैकमेल किया हो या किसी पुलिस अफसर ने आप से किसी केस के बारे में कई बार फोन करके पुलिस स्टेशन बुलाया हो तो फिर यही लक्षण कई कई गुना बढ़ जाते हैं। आप एक मनोवैज्ञानिक समस्या से ग्रस्त हो जाते हैं और इसका निराकरण न करने पर कई मानसिक और शारीरिक समस्याओं से ग्रसित भी हो जाते हैं जैसे- आईबीएस, अनिंद्रा, डिप्रेशन, फोबिया, अपच, बेचैनी, अनियंत्रित धड़कन, सिरदर्द, बदन दर्द, सीने में दर्द आदि।

क्या करें इससे निपटने के लिए-

◆ मोबाइल फोन को 24 घंटे चालू न रखें।
◆ सोते समय मोबाइल ज़रूर बंद करदें।
◆ मोबाइल को अधिकांश समय रिंग मॉड पर न रखें आराम, भोजन और परिवार के साथ समय बिताते समय इसे साइलेंट या वाइब्रेशन पर रख दें।
◆ बुरी खबर सुनने के बाद खुद से कहें कि यह खबर ही है इसको ज्यादा दिल पर न लें।
◆ बुरी खबर सुनने के बाद पुरानी रिंगटोन बदल दें वरना वह आपके अवचेतन में संग्रहित हो जाएगी और उसे विचलित करेगी।
◆ कोई भी डरावनी, नकारात्मक खबर, पोस्ट या वीडियो मोबाइल पर ना देखें।
◆ सोशल मीडिया का उपयोग केवल सकारात्मकता के लिए ही करें। नकारात्मक विचारों को न बढ़ाए न उनका समर्थन करें।
◆ सोशल मीडिया का उपयोग कम समय के लिए करें और रात को सोते समय तो बिल्कुल भी नहीं।

पुनःश्च- एक रोगी ने मुझसे पुछा था कि मोबाइल फोन के आने के बाद हम सब इतने मानसिक रूप से बीमार क्यों होने लगे हैं और शारीरिक रोग भी इतने क्यों बढ़ गए हैं। मैंने कहा कि हमारा शरीर पहले से उपस्थित किसी अंग को बदलने पर किसी और का अंग लगाने पर प्रतिक्रिया देता है जिसके लिए सर्जन कई दिनों तक स्टेरॉइड देते हैं ताकि प्रतिक्रिया ना हो। अब 21वी सदी में तो हमने एक नए अंग मोबाइल फोन को ही अपने शरीर का हिस्सा बना लिया है तो प्रतिक्रिया या रिएक्शन तो होगी ही।

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