वे ज़िद और नख़रे ना कर सकने वाले बच्चे

October 17, 2018 by Dr. Abrar Multani
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हम सभी बचपन में रूठते थे, नख़रे करते थे, बहुत एहसान जताते हुए अपनी ज़िद पूरी करवाते थे। हम सभी के बचपन में यह आम था चाहे आपका बचपन मेरी ही तरह गरीब क्यों न था। हमारे बचपन की ज़िद और नख़रे हमारे अमीर गरीब होने पर निर्भर नहीं करते वे निर्भर करते हैं हमारे मां बाप पर। वे अगर हमारे बचपन में नहीं होते तो हम ज़िद और नख़रे नहीं कर पाते दोस्तो। हमारे बच्चे जो हमारे सामने रोज़ाना इतने तमाशे करते हैं, क्या वे हमारे इस दुनिया में ना होने पर भी कर पाते? चाहे उन्हें पालने वाले हमारे रिश्तेदार उन्हें कितना ही प्रेम क्यों ना करते, वे कभी उनसे उतनी हक़ से ज़िद नहीं करते जितना हमारे सामने करते हैं। उन्हें अपने आंसुओं पर किसी बात को मनवाने की इतनी उम्मीद किसी से नहीं होती जितनी कि हमसे होती है। तरस खाकर परवरिश करना और प्रेमपूर्वक परवरिश करने में ज़मीन आसमान का अन्तर होता है पाठकों।

पैगम्बर मुहम्मद सल. की एक सीख है जिसका भावार्थ है कि, “यतीम (अनाथ) बच्चों के सामने अपने बच्चों को लाड़-प्यार मत किया करो क्योंकि उनके दिलों में इससे रंज होता है।” हम जब अपने बच्चों को किसी यतीम के सामने दुलारते हैं तो उस वक़्त उसके दिल में अपने माँ-बाप की कमी का जो गम धधकता है उसे यक़ीन मानिए दुनिया का कोई पानी नहीं बुझा सकता। यतीम बच्चों की अपनी एक अलग दुनिया होती है, वे हम सब से अलग होते हैं। उनका बचपन हमारे या हमारे बच्चों की तरह नहीं होता। उनके बचपन में दुखों का सैलाब होता है, आँसू होते हैं, भूख होती है, डर होता है, एहसानों का बोझ होता है, डांट होती हैं, ताने होते हैं, और सबसे बड़ी बात कि उनके बचपन में कोई ज़िद और नखरे नहीं होती। माना कि यतीम बचपन ने दुनिया को कई महान इंसान दिए हैं लेकिन इनकी पीड़ाओं का कोई बदला नहीं है जो बचपन में इन्होंने झेली हैं। मां-बाप से बढ़कर बच्चों के लिए कुछ भी नहीं है इस संसार में। अगर खुदा या ईश्वर ने आपको मां-बाप दिए हैं तो उसका शुक्र अदा करें और किसी यतीम की दुनिया अगर संवार सकते हों तो ज़रूर सँवारे। यतीमों से प्रेम करें, उनका दिल ना दुखाएं अगर उनकी कोई मांग हो या कोई मासूम सी ज़िद हो तो उसे ज़रूर पूरा कर दें… अगर आपके पास उन्हें देने को कुछ ना हो तो उन्हें बस ‘फूल सा प्यारा बच्चा ही कह दें’ वे खुश हो जाएंगे और ज़िन्दगी भर आपको याद रखेंगे। हाँ, तब भी याद रखेंगे जब वे बड़े होकर एक महान व्यक्ति बन जाएँगे क्योंकि मुश्किल बचपन महानता की कोख है।

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