क्या ईश्वर है?
अक्सर लोग और मेरे साथी मुझसे कहते हैं कि जो नजर आ रहा है इसे तो हम मान लेते हैं, लेकिन जो हमे दिखता नहीं उस पर यकीन कैसे करें? कैसे यकीन करें कि ईश्वर है, फरिश्ते या देवदूत हैं, स्वर्ग और नर्क है? तो मैं उनको एक उदाहरण से समझाता हूं कि यदि गर्भ में पल रहे शिशु से कोई यह कहे कि तुम्हारा यहां तुम्हारी मां के पेट में रहने का एक वक्त या समय मुकर्रर है, उसके बाद तुम्हें संसार में जाना है, वह संसार तुम्हारी मां के पेट से अरबो गुना बड़ा होगा, वहां चांद है, सूरज है, तारे हैं, पेड़ हैं,पौधे हैं, जंगल है, नदियां हैं, समुद्र है, पक्षी हैं, चौपाये हैं। इस संसार में जब तुम जाओगे तो तुम्हें वहां अपनी मां की गर्भनाल से मिलने वाला भोजन नहीं मिलेगा बल्कि वहां तो तुम स्वयं तरह-तरह के भोजन अपने मुंह से ही खाओगे, वहां तुम चलोगे फिरोगे, सांस लोगे। हां, यह सुनकर उसका छोटा सा मस्तिष्क कहेगा यह सब कैसे संभव है? मैं तो अपनी मां के पेट के अलावा कहीं और जी ही नहीं पाऊंगा, कहीं और जीवन मुमकिन ही नहीं है!
हम उसे कितना ही समझाएं लेकिन उसकी अक्ल, उसका मस्तिष्क उसे यह मानने ही नहीं देगा, लेकिन जैसे ही वह पैदा होगा सारी की सारी हकीकत उसके सामने आ जाएगी। उसकी मां के पेट से अरबो गुना बड़ा संसार उसके सामने होगा वह खाएगा, पिएगा, देखेगा, सांस लेगा, तब सत्य का दर्शन उसे हो जाएगा।
ऐसा ही हाल हम मनुष्यों का है कि हम स्वर्ग और नर्क को नहीं मानते, हम ईश्वर के अस्तित्व ईश्वर को देवदूत या फरिश्तों पर विश्वास नहीं करते लेकिन मृत्यु के पश्चात उस लोक में आंखें खुलने पर सत्य हमारे सामने होगा उसके बाद हमारे धार्मिक बन जाने का कोई लाभ नहीं है…