आत्महत्या- खुद की हत्या सदा के लिए
आत्महत्या को अंग्रेजी में सुसाइड कहा जाता है जो कि लैटिन शब्द suicidium से बना है जिसका अर्थ “स्वयं को मारना” है। WHO के अनुसार विश्व में लगभग 8,00,000 से 10,00,000 लोग हर वर्ष आत्महत्या करते हैं, जिस कारण से यह दुनिया का दसवे नंबर का मानव मृत्यु का कारण है और 15 से 30 वर्ष के युवाओं में यह दूसरा सबसे बड़ा मृत्यु का कारण। इससे मरने वाले युवाओं की संख्या दुर्घटनाओं में मरने वालों से भी अधिक है। पुरुषों से महिलाओं में इसकी दर अधिक है। विश्व की कुल आत्महत्याओं में हमारे देश का योगदान लगभग18% है। अनुमानतः हर 10 से 20 मिलियन लोग आत्महत्या के प्रयास करते हैं। युवाओं तथा महिलाओं में आत्महत्या के प्रयास अधिक आम हैं।
आत्महत्या केवल मनुष्यों में ही नहीं पाई जाती, आत्महत्या संबंधी व्यवहार को साल्मोनेला में भी देखा गया है जो कि प्रतिस्पर्धी बैक्टीरिया से पार पाने के लिए उनके विरुद्ध एक प्रतिरोधी प्रणाली प्रतिक्रिया है। आत्महत्या संबंधी रक्षा को ब्राजील में पायी जाने वाली “फोरेलियस पूसिलस” कर्मचारी चीटियों में भी देखा गया है जहाँ पर चीटियों का एक छोटा समूह घोसले की सुरक्षा के लिए हर शाम बाहर से उसे बंद करके निकल जाता है। जब उनके समूह को को खतरा होता है तो वे अपने में विस्फोट कर देते हैं जिससे उनके शरीर से निकली विशेष गंध से उनके साथी बिखर कर सुरक्षित जगह पहुंच जाते हैं। दीमक की कुछ प्रजातियों में ऐसे सैनिक होते हैं जो फट जाते हैं और उनके दुश्मन उनके चिपचिपे पदार्थ में फंस जाते हैं। यह जीवों के आत्मघाती दस्ते हैं।
प्राचीन काल से ही आत्महत्या को मनुष्य समाज ने निंदनीय कर्म बताया है अब्राहिमी मज़हबों (यहूदी, ईसाई और इस्लाम) ने इसे न माफ किया जाने वाला गुनाह बताया है और ऐसा करने वाले व्यक्ति को खुदा बिना सवाल जवाब के ही हमेशा हमेशा के लिए जहन्नुम में डाल देगा। इस्लाम में पैगंबर मुहम्मद सल्ल. ने आत्महत्या न करने के लिए अपने अनुयायियों को बहुत सी कठोर सिख दी हैं जिसके चलते मुस्लिमों में आत्महत्या की दर सबसे कम है। वैसे भी देखा गया है कि आत्महत्या करने में धार्मिक व्यक्तियों का अनुपात कम होता है। इसकी वजह धर्म से मिलने वाली शांति और आशा है।
इतिहास में देखें तो प्राचीन एथेंस में जो व्यक्ति राज्य की अनुमति के बिना आत्महत्या करता था तो उसे सामान्य रूप से दफन होने का अधिकार नहीं था। प्राचीन ग्रीस और रोम में आत्महत्या को युद्ध में हार के समय मौत का स्वीकार्य तरीका था। प्राचीन रोम में, आरंभिक रूप से आत्महत्या को अनुमत माना जाता था, लेकिन बाद में इसे इसकी आर्थिक लागत के कारण राज्य के विरुद्ध अपराध माना जाने लगा।1670 में फ्रांस के लुई XIV द्वारा एक आपराधिक राजाज्ञा जारी की गयी थी, जिसमें अधिक कठोर दंड का प्रावधान थाः मृत व्यक्ति के शरीर को चेहरा जमीन की ओर रखते हुए सड़क पर घसीटा जाता था और फिर उसे लटका दिया जाता था, जिसके बाद कूड़े के ढ़ेर पर डाल दिया जाता था। ऐतिहासिक रूप से इसाई चर्च के वे लोग जो आत्महत्या का प्रयास करते थे समाज से बहिष्कृत कर दिए जाते थे और वे जो मर जाते थे उनको निर्धारित कब्रिस्तान से बाहर दफनाया जाता था। 19 वीं शताब्दी के अंत में ग्रेट ब्रिटेन में आत्महत्या के प्रयास को हत्या के प्रयास के तुल्य माना जाता था और इसकी सजा फाँसी तक थी। 19 वीं शताब्दी में यूरोप में आत्महत्या के कृत्य को पाप से किए जाने वाले काम से हटाकर पागलपन से प्रेरित कृत्य कर दिया गया।
कारण क्या हैं आत्महत्या करने के-
●घोर तनाव
●घोर निराशा
●असफलता
●घोर अपमान
●डर
●आर्थिक नुकसान या कर्ज़
●सामाजिक प्रतिष्ठा नष्ट होने का भय
●कोई लाइलाज बीमारी जैसे एड्स, कैंसर
●लंबी और दर्दनाक लंबी बीमारी
●दवाओं के साइड इफेक्ट्स जैसे बीटा ब्लॉकर्स तथा स्टेरॉयड्स
●नशा आदि
आत्महत्या से बचाव कैसे हो-
●सबसे पहले तो आत्महत्या करने के साधन उपलब्ध न हो। यदि आत्महत्या के लिए ज़हर, बंदूक, रस्सी तुरंत उपलब्ध न हो तो गुस्सा और निराशा के बादल समय के साथ हटते ही आत्महत्या का विचार बदल जाता है। एक बार यदि कोई यह प्रयास कर चुका है तो उसके दोबार आत्महत्या करने की संभावना ज्यादा है इसलिए उन लोगों से घातक वस्तुएं दूर रखें।
● धर्म की शरण ले, क्योंकि ईश्वर पर आस्था आपको आशा और शांति देगी।
● तनाव और निराशा को दूर करने की प्लानिंग बनाइये। इसके लिए किसी प्रोफेशनल से मिलिए या दोस्तों और रिश्तेदारों की सलाह लीजिए।
● सब्र से काम लीजिए, क्योंकि अधिकांश समस्याएं समय के साथ खत्म हो जाती हैं, चाहे वे कितनी ही बड़ी क्यों न हो।
● आत्महत्या के विचार आ रहे हो और आप कोई दवाई लेते हैं तो अपने डॉक्टर से ज़रूर बात करें ताकि वह उन दवाओं की जगह कोई और दवाई आपको दे।
● बिल्कुल मत सोचिये की आपकी आत्मा को सब पता चलेगा कि लोग कितने दुःखी हैं आपके जाने से। यह सब फिल्मी बातें हैं जिनमें कोई सच्चाई नहीं। पुनर्जन्म को भी भूल जाइए कि आप नया जन्म ले लेंगे और फिर उसमें सब शांति ही शांति होगी। याद रखें आपको बस जीवन एक ही बार मिला है अब दूसरा कोई मौका नहीं।
● अकेले न रहें। लंबे समय का एकांत घातक है हम मनुष्यों के लिए क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।
● क्षमा और दया कीजिए लोगों पर।
● दूसरों को दोष देना और दूसरों से लंबी लंबी उम्मीदें बांधना- दोनों घातक है।
● डर से मत डरिये। आपका डर आपकी हिम्मत और आत्मविश्वास से नष्ट हो जाएगा आवश्यकता है तो सिर्फ एक अच्छी प्लानिंग की।
अंत में यह शाश्वत नियम याद रखें- हर मुश्किल के बाद आसानी है, हर अंधेरी रात के बाद सवेरा है और हर दुःख के बाद आनंद है…हाँ, यह नियम आपके लिए भी सत्य है दुनिया के बाकि लोगों की तरह।