क्या हमें बीमार करते हैं क्राइम प्रोग्राम्स?

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उस 35 वर्षीय महिला को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी, छाती पर भारी पन, गले में घुटन, पेट के ऊपरी हिस्से में खाली खाली पन लगता था, बार बार मल त्यागने की इच्छा होती थी और नींद में कमी हो गई थी…। इन सभी समस्याओं से 3 वह महीने से परेशान थी। समस्या बढ़ती जा रही थी, टेस्ट होते जा रहे थे, डॉक्टर दवाई बदल रहे थे और वह डॉक्टर बदल रही थी… लेकिन नतीजा ज़ीरो। मैंने समस्या ध्यान से सुनी और पूछा कि आप हॉउस वाइफ हैं या कि वर्किंग वुमन? उसने जवाब दिया कि वह एक हॉउस वाइफ है और परिवार में पति और 2 बच्चे हैं। मैंने पूछा आप व्यस्त हाउस वाइफ हैं या फिर थोड़ी फुरसत में रहती हैं? उसने कहा कि सर दिन भर फ्री ही रहती हूं कोई ज्यादा काम नहीं है। मैंने पूछा कि आप फ्री समय मे क्या करती हैं? उसने कहा कि टीवी देखती हूँ ज्यादा समय। मैंने पूछा क्या देखना पसंद है आपको? उसके पति ने इस सवाल पर तुरंत जवाब दिया कि सर यह दिनभर टीवी पर क्राइम पेट्रोल और सावधान इंडिया देखती रहती है बस।

शायद हम समस्या की जड़ में पहुंच चुके थे। उस महिला की समस्याओं की वजह थी यही डरावने और शक़ पैदा करने वाले प्रोग्राम। हमारा मस्तिष्क इसी तरह प्रोग्राम्ड है कि इसे जो चीज बार बार दिखाई जाएगी वह उसको सत्य मानने लगेगा और उसे अपने आसपास महसूस करने लगेगा। इन प्रोग्राम्स में कुछ चुने हुए केसेज को लिया जाता है और उसे मनोरंजक और लोगो को आकर्षित और बांधे रखने के लिए थोड़ा थ्रिल और डर डाला जाता है सबसे कनेक्ट करने के लिए थोड़ी मनगढ़ंत स्टोरीज़ बनाई जाती है। यह सभी मिलकर डर को बढ़ा रहे हैं समाज में, भोले लोगों में, अनभिज्ञ और नासमझ लोगों में, बच्चों, युवाओं और खासतौर से महिलाओं में। आपका जीवनसाथी आपको दुश्चरित्र लगने लगता है, ज़ोर से अगर कोई दरवाज़ा बजा दे तो धड़कने बढ़ जाती हैं, रात में कोई बिल्ली ही आजाए किचन में तो लोगों को डकैतों के आने का शक़ हो जाता है, अपरिचित जगह जाने पर हर व्यक्ति आपको लूटेरों जैसा लगने लगता है, नए शहरों में टैक्सी का ड्राइवर आपको बलात्कारी या आपकी हत्या करने वाला लगने लगता है, आपकी बच्चों की देखरेख करने वाली भोली भाली आया में आपको एक क्रूर किडनैपर नज़र आने लगता है… आदि।

वह महिला भी इन्हीं सब में उलझ गई थी और बेवजह के डरो ने उसको तनाव से भर दिया था, उसका अवचेतन मन इन सब से परेशान था। वह नहीं जानती थी कि उसकी सभी समस्याओं के पीछे ये सब था, क्योंकि सकारात्मक विचारों की शक्तियों और नकारात्मक विचारों के नुकसानों को अभी विश्व के लगभग 95% लोग समझ ही नहीं पाए हैं। डर और तनाव हमारी मांसपेशियों को सख्त कर देते हैं जिसके चलते सांस लेने में पेट की मांसपेशियों से मदद नहीं मिलती और व्यक्ति पूरी तरह से सांस नहीं ले पाता और घुटन महसूस करने लगता है, पेट नकारात्मक और डरावने विचारों को बर्दाश्त नहीं कर पाता और वह आईबीएस जैसे रोगों से ग्रस्त हो जाता है जिसमें बार बार मल त्याग करना पड़ता है, पेट में मरोड़ होती हैं और एसिडिटी भी।

उस महिला या उस जैसे कई रोगियों की समस्याओं का हल है कि उसे उन डरावने और उसके जीवन में कोई महत्व नहीं रखने वाले प्रोग्राम से दूर कर देना…क्योंकि सकारात्मक विचारों का प्रवाह, थोड़ी शांतिदायक दवाई और समय इन डरों को नष्ट करके उसके जीवन को पुनः सामान्य कर देंगे। आप भी इन प्रोग्राम से दूरी बना लें, यदि आप कोई इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर नहीं है तो। अगर आप किसी ऐसी नौकरी में हैं जिसमें ऐसे प्रोग्राम देखकर आपको अपराधियों को पकड़ने की ट्रिक मिलती है तो ये आपके लिए फायदेमंद हैं अन्यथा ये आपके किसी काम के नहीं। लोगों पर भरोसा कीजिए क्योंकि दुनिया में अब भी अच्छे लोग बहुत ज्यादा संख्या में हैं बुरों की तुलना में। सकारात्मक सोच को विकसित करें, सकारात्मक प्रोग्राम देखें जैसे मेरा फेवरेट ” मेन वर्सेज वाइल्ड”। 

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