क्या दवाओं से विचारों को बदला जा सकता है?
एक हट्टे कट्टे युवा को उसके माता पिता मेरे पास लाए, समस्या यह थी कि वह डरपोक था। उसे उससे बहुत कमज़ोर और कम उम्र के लड़के डरा धमकाकर पैसे ऐंठते थे, उसका मजाक बनाते थे और उसकी चीजे छीन लेते थे। माता पिता की डिमांड थी कि मैं ऐसी कोई दवाई लिख दूँ जिससे उनके बेटे का डर भाग जाए और वह बहादुर बन जाए। मैंने कहा आप बताइए अगर ऐसा होता कि एक गोली गटकाने से कोई वीर और बहादुर बन जाता तो क्या सरकारें अपने आम नागरिकों को वह गोली खिलाकर सैनिक न बना लेती, वे क्यों सैनिकों की ट्रेनिंग पर करोड़ों अरबों रुपये खर्च करती? आखिर फिर क्यों न हर मां बाप अपनेे बच्चों को शूरवीर बनाने के लिए पोलियो की ड्रॉप की तरह वीरता की ड्रॉप भी पिलाने लगते।
मैंने देखा है कि डिप्रेशन, तनाव, डर के रोगी दवाओं के लिए इधर उधर भटकते रहते हैं और उनके चिकित्सक भी उनकी समस्या सुनते ही दवाओं का लंबा सा प्रेस्क्रिप्शन लिख देते हैं…प्रतिवर्ष लगभग 200 मिलियन पर्चे! लेकिन प्रिय चिकित्सकों आप यह क्यों नहीं सोचते कि इन रोगियों के विचारों में बदलाव उन केमिकल की कमी के कारण थोड़े ही हुए हैं जो आप इन्हें दवाइयों में दे रहे हैं। अधिकांश केस में रोगियों के दिमाग के केमिकल को शांत किया जाता है लेकिन असर खत्म होते ही बुरे ।विचार फिर अपना असर दिखाने लगते हैं।अर्थात अब रोगी को अगर ठीक होना है तो उसे अपने विचारों को बदलने के साथ ही इन दवाओं से भी पीछा छुड़ाना पड़ेगा। हाँ, यह सत्य है कि एन्टी डिप्रेशेन्ट बहुत घातक और जटिल अवसाद में जीवनरक्षक की तरह काम करती हैं लेकिन कम घातक या सामान्य अवसाद को यह घातक भी बना सकती हैं।
आपके विचारों को दवाई नहीं बदल सकती, नहीं बदल सकती…नहीं बदल सकती, यह बात आप गांठ बांधले। विचारों को बदलने का बीड़ा आपको ही उठाना है। इसके लिए आप स्वयं विचारों को परिवर्तित करें, किताबों की मदद लें, प्रोफेशनल की मदद लें, धर्म की मदद लें, सच्चे मित्रों की मदद लें।
अंत में याद रखें कि आप वही हैं जो आपके विचार हैं क्योंकि हड्डियां, मांस और खून तो सभी मनुष्यों के शरीर में एक जैसा ही है।