डर से इतना भी न डरें
मैंने तीन साल पहले एक किताब लिखी थी “सोचिये और स्वस्थ रहिये”, सौभाग्य से वह बहुत ही ज्यादा सफल रही। दो साल बाद उसके तीसरे संस्करण में मैंने एक अध्याय जोड़ा था “डर से इतना भी न डरे”। यह अध्याय पाठकों को बहुत पसंद आया। क्यों? क्योंकि हम सभी मनुष्यों में एक गुण अवश्य होता है कि ‘हम डरते हैं’ इसलिए सभी पाठक उससे कनेक्ट हुए। डर जब हद से बाहर हो जाता है तो फिर मनुष्यों का एक अवगुण बन जाता है। डर से निजात दिलाने वाले व्यक्ति को हम नेता, गुरु, क्रांतिकारी और अवतार तक कह देते हैं। हर वह व्यक्ति मसीहा बन जाता है हमारे लिए जो हमें डर से बचा ले। मेरे कई पाठकों ने मुझसे पूछा था कि इस अध्याय का नाम “डर से बिल्कुल भी न डरे” क्यों नहीं रखा आपने? तो मेरा जवाब था कि यह अवस्था आ ही नहीं सकती कि इंसान डरना पूर्णतः छोड़ दें। कई बार जीवित रहने के लिये डर ज़रूरी भी हैं जैसे आग से डर, एक विक्षिप्त आग में कूद जाएगा बिना डरे तो क्या होगा? कोई 100 फ़ीट गहराई में बिना डरे छलांग लगा दे तो? इसलिए डर ज़रूरी है लेकिन बेवजह के डर घातक हैं। जैसे इंसानों से डर, भीड़ से डर, संख्या से डर, भविष्य का डर, मर जाने का डर, कोई अनहोनी हो जाने का डर, अंधेरे से डर, फूलों से डर, कीटों से डर…आदि।
डर को हराकर ही मनुष्य अपने जीवन और संसार का आनंद ले सकता है। डर को हराने के लिए क्या करना चाहिए? यह एक प्रश्न है जो अधिकांश डरपोक कभी पूछते नहीं और ज़िन्दगी को नर्क बना लेते हैं। डर को हराने का एक ही मूलमंत्र है- “डर पर जोरदार प्रहार या डर से मुक़ाबला”। डर से दूर भागकर तो आप और ज्यादा डरते जाएंगे, और भीरु तथा, और ज्यादा डरपोक बनते जाएंगे। एक उदाहरण से समझिए- आप अपने घर में अकेले हैं, बिजली भी गुल है, रात के डेढ़ बजे हैं, सब तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है… इतने में किचन से एक बर्तन के गिरने की जोरदार आवाज़ आती है। आप इस स्थिति में अगर रजाई औढकर और डरकर दुबके ही रहेंगे तो आपका डर बढ़ता ही जाएगा। यदि ऐसा रोज़ होता रहा तो आप डर के मारे बीमार हो जाएंगे। अब दूसरी तरफ अगर आप बिस्तर छोड़कर, टॉर्च उठाकर किचन की तरफ जाते हैं और वहां देखते हैं तो पाते हैं कि वहां एक मासूम सी बिल्ली थी और उसने दूध को पाने के लिए यह बर्तन गिराया था। अब आपका डर गायब हो जाएगा और भविष्य की ऐसीे ही किसी घटना से आपको डरने से बचाएगा। डरकर भागजाने से डर हावी होता चला जाता है।
डरपोक लोगों के साथ रहने से डर अमरबेल की तरह बढ़ता है और बहादुरों के साथ से यह छुईमुई की तरह मूर्छित हो जाता है। डरावने प्रोग्राम, शक़ बढ़ाते टीवी शो, नकारात्मक खबरों, मैसेज और वीडियो का अंबार आपके डर के लिए खाद का काम करेंगे और इसे दिन दूना रात चौगुना बढ़ाएंगे। डर को हराना है तो इनसे दूर रहें। दूसरों से प्रेम और करुणा तथा ईश्वर पर आस्था बेवजह के डरों को जड़ से नष्ट कर देते हैं।