एक लेख जो आपके जीवन में बहुत काम आएगा
तनाव का सदुपयोग करें
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तनाव मनुष्य का एक ज़रूरी गुण है। आप शायद चोक गए होंगे या समझ रहे होंगे कि यहाँ कोई मिसप्रिंट हुआ है। नहीं प्रिय पाठकों आपने सही पढ़ा है कि तनाव या चिंता हम मनुष्यों का एक आवश्यक गुण है। मैं तो यह भी कहता हूँ कि तनाव के बिना मानव जाति कब की विलुप्त हो चुकी होती। तनाव तब अवगुण या घातक हो जाता है जब आपको इससे निपटना न आए या आप इससे हार मानने लगें। तनाव जब हमारे मन, मस्तिष्क और आत्मा पर हावी होने लगता है तब यह समस्या उत्पन्न करता है, जानलेवा समस्याएं। अच्छा आप मुझे यह बताइये कि कौन सांप से ज्यादा डरेगा- वह व्यक्ति जिसे सिर्फ सांप के विष के जानलेवा गुण बताए गए हैं या वह व्यक्ति जिसे सांप से बचना, विषैले और विषहिन में फर्क करना और सांप के विष की प्राथमिक चिकित्सा सिखाई गई हो? निश्चित ही वह व्यक्ति ज्यादा डरेगा जिसे डराया तो बहुत गया लेकिन उससे निपटना नहीं सिखाया गया। तनाव के बारे में भी यही होता है कि हमें सब डराते हैं लेकिन लड़ना या उससे निपटना नहीं सिखाते। आग से कोई व्यक्ति जल सकता है और कोई उससे खाना पका लेगा, जिसे आग को नियंत्रित करना आता है। तो समस्या आग नहीं है समस्या है उसे नियंत्रण नहीं कर पाने की हमारी असमर्थता। चाकू से एक व्यक्ति अपना हाथ काट सकता है लेकिन सावधानी से वही व्यक्ति कई सारे सृजनात्मक कार्य भी कर सकता है। यहाँ भी समस्या चाकू नहीं है समस्या तो उसके उपयोग में की गई लापरवाही है।
मानव विकास यात्रा में तनाव ने ही इंसानों को विकास या परिवर्तन करना सिखाया है। तनाव और भय ने ही उसे गुफा में रहना सिखाया, भोजन की फिक्र ने उसे शिकार करना सिखाया और फिर कृषि और पशुपालन करने के लिए प्रेरित किया। बीमारियों से डर और उससे उत्पन्न तनाव ने उसे जड़ी बूटियों से लेकर सर्जरी तक करना सिखाया। यह तनाव ही है जो हमसे हमारा बेहतर करवाता है… तनाव के बिना तो हमारा जीवन एक ही ढर्रे पर चलता रहता और हम इंसान ‘सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट’ के सिद्धांत के अनुसार नष्ट या विलुप्त हो गए होते। हमने कई बार लोगों को कहते सुना होगा कि ” मैं प्रेशर में ही अपना बेस्ट दे पाता हूँ।” याद कीजिए अपने परीक्षा के दिनों को जब हमारी याद करने की क्षमता आम दिनों से कई गुना अधिक बढ़ जाती थी, क्यों क्योंकि हमारा तनाव हम से हमारा सर्वश्रेष्ठ करवा रहा था। तो तनाव यहाँ पर हमारे लिए लाभदायक सिद्ध हो रहा है। आप रेकॉर्ड उठा कर देख लीजिए कि खिलाड़ियों ने अपना सर्वश्रेष्ठ ओलंपिक खेलों या किसी अन्य बड़ी प्रतियोगिता में ही दिया है। जितनी बड़ी प्रतियोगिता उतना बड़ा तनाव और उतना ही बेहतरीन प्रदर्शन। और याद रखिए कोयला पृथ्वी के गर्भ में दबाव के कारण ही हीरे में बदलता है।
तनाव हमारी उम्र, सेहत, आर्थिक स्थिति, शिक्षा, प्रशिक्षण, सामाजिक स्थिति, सामाजिक माहौल, परिवार के सदस्यों की संख्या आदि सेकड़ो कारकों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए हम सांप को देखकर हमारे बच्चें तनाव से भर जाएंगे जबकि सपेरे के बच्चों को कोई तनाव नही होगा, कई भाइयों वाला व्यक्ति बिना भाई वाले व्यक्ति से ज्यादा असुरक्षित महसूस करेगा। एक रिसर्च में पाया गया कि वे नर्स कम तनाव और ज्यादा खुश थी जो कि तनावपूर्ण आई सी यु में ड्यूटी करती थी बनिस्बत उनके जो कम तनावपूर्ण अन्य वार्डों में ड्यूटी करती थी। वकीलों के समूहों पर भी ऐसा ही परिणाम प्राप्त हुआ अर्थात वह वकील ज्यादा खुश रहते हैं जो ज्यादा जटिल और तनावपूर्ण केसेस लड़ते हैं। यह भी देखा गया है कि अधिक तनावपूर्ण कार्य करने वाले प्रोफेशनल जीवन मे ज्यादा खुश और ज्यादा सेहतमंद होते हैं जैसे डॉक्टर, पायलट, सैनिक, नर्स, खोजी पत्रकार, वकील आदि।
हम महान भी उन्हीं लोगों को मानते हैं जो तनाव में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, आखिर आप ही बताइए कि हम विराट कोहली को इतना क्यों चाहने लगे हैं? हाँ, इसीलिए न कि वह दबाव में अच्छा खेलते हैं और अपनी टीम को मैच जीता देते हैं।
एक सिनेमा हॉल में अचानक से सांप आ जाए और फ़िल्म देखने वाले सभी आम लोग हो तो क्या होगा? हाँ, भगदड़ मच जाएगी और सांप के ज़हर से ज्यादा जानें भगदड़ ले लेगी। अब आप इमेजिन करिये कि उस सिनेमा हॉल में सभी सपेरे बैठें हो और सांप आए तो क्या होगा? क्या सारा परिदृश्य बदल नहीं जाएगा? अब वे सपेरे सांप को पकड़ने के लिए दौड़ पड़ेंगे। तो समस्या सांप नहीं थी, समस्या तो सांप को नियंत्रित न कर पाने अक्षमता की थी। यदि उन आम लोगों को भी सांप को नियंत्रित करने का प्रशिक्षण दिया जाता तो वे भगदड़ कभी न मचाते। वैसे ही समस्या तनाव नहीं है समस्या है तनाव को मैनेज न कर पाना। क्योंकि हमने उसे मैनेज करना सीखा ही नहीं। वैसे ही एक आम अप्रशिक्षित व्यक्ति गहरे समुद्र में डूब जाएगा और वहीं एक पेशेवर गौताखोर उस गहराई से मोती निकालकर ले आएगा। यहाँ भी समस्या समुद्र नहीं है व्यक्ति का अप्रशिक्षित होना है।
तनाव से युद्ध कैसे करें-
1. तनाव का कारण पता करें-
हम हमेशा हड़बड़ी में रहते हैं, हम जल्दी में हैं, क्यों? पता नहीं। हम परेशान हैं, हम चिंतित हैं, हम अवसाद में हैं, हम चिढ़चिढ़े हो गए हैं, हम क्रोधित छवि बना चुके हैं, हम बहुत अधिक तनावग्रस्त हैं….क्यों? क्योंकि हम खुद से कभी नहीं पूछते कि ‘आखिर क्यों’।
मेरे पास आने वाले मानसिक समस्या से पीढ़ित रोगी से मैं पहली सीटिंग या पहले परामर्श सेशन में पूछता हूँ कि आप आखिर रोगी क्यों बने ? क्यों आप चितिंत हैं या क्यों आप डिप्रेशन से घिर गये या क्यों आप अपना जीवन समाप्त करना चाहता है या क्यों आप उन लोगों पर क्रोधित होने लगे हैं जो आपसे प्रेम करते हैं या क्यों आप डरने लगे हैं उनसे भी जिनसे कोई नहीं डरता… आदि। मैं हैरान हो जाता हूँ कि अधिकांश को पता ही नहीं होता कि वे क्यों परेशान हैं और कई तो ऐसे भी होते हैं जो केवल इसलिए परेशान होते हैं कि कुछ साल पहले एक परिस्थिति आई थी जिसमें वे तनावग्रस्त हुए थे और इसीलिए वे आज भी हैं तनाव से लबरेज़ जबकि वे खुद जानते हैं कि अब परिस्थिति बिल्कुल बदल चुकी है।
अधिकांश रोगी कभी खुद से यह सवाल नहीं पूछते कि क्यों मैं इन सब में उलझ रहा हूँ? क्या उसे इतना उलझने की आवश्यकता है? आप भी किसी चिंता से परेशान हैं तो खुद से सवाल करें कि आखिर मैं क्यों चिंतित हूँ? क्यों मुझे चिंतित होने की आवश्यकता हैं? क्या इसका हल नहीं हैं? याद रखें आपको जवाब तभी मिलता है जब आप सवाल पूछते हैं। बिना सवाल के जवाब का अस्तित्व नहीं है। प्रश्न की उपस्थिति उत्तर के अस्तित्व के लिये नितांत आवश्यक हैं। और याद रखें कि सवाल समाधान की पहली सीढ़ी है, सवाल के बिना समाधान नहीं हो सकता।
बहरहाल हम तनाव की वजह को जाने समझे कि आखिर हम क्यों तनाव महसूस कर रहे हैं। तनाव के लक्षण आपको कब महसूस हो रहे हैं, समय, तारीख़ और स्थान तथा किसी से मुलाक़ात के बाद या पहले…इससे आपको तनाव की वजह पता करने में मदद मिलेगी। जैसे यदि तनाव सोमवार को ऑफिस जाने से पहले हो रहा है और उस रात आपको नींद भी नहीं आती तो आप समझ सकते हैं कि आप काम का तनाव ले रहे हैं या बॉस से डर रहे हैं। यदि महीने के अंत में तनाव महसूस कर रहे हैं तो आपका तनाव खर्च को लेकर है। यदि तनाव आपको सुबह है, बच्चों के स्कूल जाते समय, तो तनाव यह है कि आप बच्चों को भेजने में अक़्सर लेट हो जाती हैं इसलिए यह आपको परेशान कर रहा है।
2. प्रार्थना करें और सब कार्यों को ईश्वर के सुपुर्द करें जो उसके हैं। अक़्सर लोग इसलिए तनावपूर्ण होते हैं क्योंकि वे ईश्वर के काम भी खुद करना चाहते हैं। मैंने पाया है कि यदि तनावग्रस्त व्यक्ति को यह समझा दिया जाए कि ईश्वर के क्या काम है और हम इंसानों के क्या हैं और उसे सिर्फ उसके कार्यों पर ध्यान देना चाहिए ईश्वर के कार्यों के लिए निश्चिंत रहना चाहिए तो वह व्यक्ति तनावमुक्त हो जाता है।
मेरे केरियर के शुरुआती दौर में मुझे सरकारी चिकित्सक की नौकरी करना पड़ी और गाँव के गरीब परिवार से होने के कारण सभी का दबाव था कि मैं वह नौकरी जॉइन करूँ और उसी में अपना जीवन लगा दूं ताकि ज़िन्दगी गुज़ारने की परेशानी न रहे। मैंने उसे अनमने मन से जॉइन किया। मैं उससे बिल्कुल संतुष्ट नहीं था। मैं कशमकश में और परेशानी में था कि इसे कैसे छोडू और वह करूँ जो मेरा दिल चाह रहा है। एक बार मेरी मुलाकात मेरे दोस्त से हुई जो मुझसे उम्र में काफी बड़े थे लेकिन हम दोनों एक दूसरे को अच्छे से समझते थे (मेरे अधिकांश दोस्त मुझसे उम्र में बड़े ही हैं)। उन्होंने मेरे परेशान चेहरे की वजह पूछी। मैंने उन्हें बताया कि मैं सरकारी नौकरी नहीं करना चाहता, अपनी खुद की क्लीनिक और राइटिंग का काम करना चाहता हूँ लेकिन सब कह रहे हैं कि सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद अगर प्राइवेट प्रैक्टिस नही चली तो फिर कहीं के नहीं रहोगे। उन्होंने मुझे बताया कि इंसानों के डर, परेशानी, चिंता और तनाव के मूल 3 कारण हैं- 1. रिज़्क़ (पोषण एवं जीवनुपयोगी वस्तु का इंतज़ाम) 2. बीमारी और 3. मौत, और ताज्जुब की बात है कि यह तीनों ही बातें खुदा के कब्ज़े में हैं (इस्लाम की मूल शिक्षा के अनुसार उन्होंने मुझे बताया था कि रिज़्क़, मौत और बीमारी सिर्फ ईश्वर के आदेश के अधीन है)। उनकी यह बात मेरे लिए एक सुकून का महाडोज़ साबित हुई और मैं भविष्य की चिन्ताओं से उबरकर निर्णय ले पाया, मैंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया …और मेरा निर्णय बिल्कुल सही साबित हुआ (अभी तक तो और ईश्वर से उम्मीद है कि वह आगे भी मेरे लिए बेहतर ही करेगा)।
हमारी उस बातचीत के बाद मैं बिल्कुल नया हो गया एक नया इंसान जैसे पहले एक अलग अबरार मुल्तानी था और उनकी बातों को सुनने के बाद एक अलग अबरार मुल्तानी…और मुझे अपनी प्रैक्टिस में डर और चिन्ताओं में डूबे रोगियों को यह बात बताकर ठीक करने में बहुत मदद मिली। मुझे ताज्जुब होता है कि मुझे मानसिक रोगों (तनाव आदि) के उपचार की यह विधि मेरे एक दोस्त ने बताई जो कि मेडिकल का जानकार नहीं था और मेरे मेडिकल कॉलेज में इस बारे में एक भी कक्षा नहीं लगी…पता नहीं यह विज्ञान कब मन की चिकित्सा करना सीखेगा और फिर सिखाएगा…तो आप भी तनाव, चिंता और डर से निजात पाना चाहते हैं तो ईश्वर का काम ईश्वर को करने दें और आप केवल अपने काम पर ध्यान दें…
3. दोस्तों के साथ रहें, दोस्तों से अपने मन की बात बताएं। उनसे अपनी समस्या का समाधान करने के लिए विचार विमर्श करे। मेरा मानना है कि अगर हम सच्चे दोस्त नहीं बनाएँगें तो फिर इंतजार करें दवाइयां आपकी दोस्त बन जाएगी, जो कि बिलकुल भी शुभ संकेत नहीं है।
4. प्रकृति की शरण में आजाइये। प्रकृति से जुड़ने के साथ हमारे अंदर एक सकारात्मकता उत्पन्न होती है। आप हरे झाड़, मुलायम और शीतल घांस, झील की हिलोरे मारती लहरे, भीगो कर फिर भाग जाने वाली समुद्र की लहरें, धुंध में ढकी पहाड़ियों की चोटियां आपको सुकून से भरदेंगी। झरने देखकर आपका तनाव भरभराकर झड़ जाएगा।
5. ज़िन्दगी को आसान बनाए- खालिद हुसैनी की विश्व प्रसिद्ध किताब ‘काइट रनर’ का पात्र अपने घर के नौकर के हमउम्र बच्चे को अपनी लिखी एक कहानी सुनाता है कि, “एक आदमी को एक जादुई प्याला मिल जाता है, उस प्याले में जब भी उसके आँसू गिरते तो वे मोतियों में बदल जाते। लेकिन वह आदमी बड़ा खुश मिजाज़ था। मोती पाने के लिए वह उदास रहने लगा और रोकर आंसुओं से मोती बनाने लगा। हर वक्त गमगीन होने के बहाने ढूंढने लगा। लालच बढ़ता गया। आखिर में वह अपने आंसुओं से निर्मित मोतियों के ढेर पर बैठा रो रहा था, उसके हाथ में चाकू था और पास में उसकी बीवी की कटी हुई लाश पड़ी थी।”
कहानी सुनाकर वह उस गरीब बच्चे से पूछता है कि, “कैसी लगी कहानी?” तो वह बच्चा कहता है कि, “कहानी तो अच्छी थी लेकिन आंसुओं को लाने के लिए उस आदमी को क्या प्याज़ नहीं मिल सकती थी…गमगीन होने और बीवी को कत्ल करने की क्या ज़रूरत थी?
हम भी ऐसे ही हैं ज़िन्दगी के आसान कामों को करने के लिए जटिल रास्ता अपना लेते हैं, प्याज़ की जगह चाकू का प्रयोग करने लगते हैं।
6. पालतू जानवर का साथ भी आपको तनावमुक्त रखेगा।
7. किसी प्रोफेशनल कॉउंसलर से कॉउंसलिंग भी आपकी बहुत मदद करेगी।
8. नकारात्मक लोगों और खबरों से दूरी बना ले।
9. खुद से बात करें। खुद को बताएं कि स्थिति उतनी खराब नहीं है, खुद से कहें कि आप मे वह शक्ति है ऐसी स्थिति से निकलने की या निपटने की, खुद को याद दिलाएं कि पहले भी आप इससे ज्यादा परेशान स्थिति से निकल चुके हैं।
10. कसरत या वर्कऑउट करें। कसरत वह औषधि है जो हमारे शरीर को थका कर मन को शांत कर देती हैं। आपने देखा होगा कि आम लोगों की तुलना में पहलवानों में तनाव कम होता है, वजह है उनकी कसरत।
11. सबसे बड़ी बात कि खुद को बदलने के लिए तैयार रहें। स्थिति को भी बदलने का सामर्थ्य पैदा करें। स्थिति के अनुसार न बदले बल्कि स्थिति को बदलने की शक्ति उत्पन्न करें… और आप कर सकते हैं।
12. सब्र से काम ले क्योंकि हमारी अधिकांश समस्या समय के साथ स्वतः नष्ट हो जाती है।
13.कुछ आयुर्वेद दवाई भी आपकी काफी मदद कर सकती हैं जो किसी योग्य चिकित्सक की देख रेख में ले, जैसे- तगर, ब्राह्मी, अश्वगंधा, सर्पगंधा, शंखपुष्पी आदि।