अब ज़रूरत है काऊ इंस्पेक्टर की
भोपाल से उज्जैन का वह सुहाना सफर था। मौसम खूबसूरत और बेहद रुमानी था। ड्राइव मैं ही कर रहा था। बहुत ही अच्छी तरह बनाया और मैनेज किया हाईवे देवास तक था। अमूमन सभी गाड़ियों की रफ्तार 80 से 100 के बीच होती है लेकिन इसबार यह 60 से 80 के बीच हो गई थी। इसकी वजह थी बेचारी गायें। जिन्हें हम इंसानों ने बेसहारा और बेआसरा छोड़ दिया है। यह बेहद खूबसूरत और मासूम जानवर हमारी लापरवाही और बदइंतजामी के कारण जानलेवा हो गया है।
इस 184 km के रास्ते में हमेंं 3 जगह खौफनाक दृश्य मिले। एक में डिवाइडर पर घांस चरती एक गाय किसी चीज से डरकर अचानक रोड पर कूद पड़ी और हमारे आगे चलते एक ट्रक के सामने आगई। ट्रक अनियंत्रित और एक्सीडेंट होते होते बचा। दूसरे दृश्य में पुलिया के पास अचानक कहीं से दौड़ता बछड़ा हमारी गाड़ी के सामने आ गया और हमारी कार भी एक्सीडेंट होते होते बची और उस बछड़े को भी चोट लगते लगते बची। तीसरा सबसे घातक था वह उज्जैन के नज़दीक नरवर में एक कार की ट्रैक्टर ट्रॉली से टक्कर जिसमें कार सवार ऑन स्पॉट मर गए थे वजह थी गाय के कारण ट्रैक्टर को अचानक मोड़ना पड़ा और पीछे तेज़ रफ़्तार में आरही कार उसकी चपेट में आगई।
इन दृश्यों ने मुझे प्रेरित किया कि मैं शासन और प्रशासन को इस बात के लिए सुझाव दूँ कि वे एक नए पद का सृजन करें जिसका नाम हो ‘काऊ इंस्पेक्टर’ या ‘गाय निरीक्षक’। मैं इस बात पर पूरा पूरा विश्वास रखता हूँ कि जानवरों की दुर्दशा के लिए केवल और केवल हम इंसान ही जिम्मेदार हैं। समस्या गाय नहीं है समस्या हम इंसान हैं जो इनका सही से नियमन नहीं कर पा रहे हैं। काऊ इंस्पेक्टर इस समस्या का समाधान है जो गायों को हाईवे से हटाएगा। गायों के सींगों पर रिफ्लेक्टर लगाने का काम भी उसी का रहेगा। इससे गायों और वाहनों दोनों को सुरक्षा मिलेगी। यात्रा में लगने वाला समय कम होगा (ज्ञात रहे कि ऐसे में हाईवे की 500 किलोमीटर की यात्रा में डेढ़ से दो घंटे ज्यादा लग रहे हैं)। इसके लिए काऊ इंस्पेक्टर का खर्च टोल टेक्स में ही जोड़कर लिया जा सकता। यदि यह सफल रहता है तो इसे किसानों की फसल की हिफाज़त के लिए भी आजमाया जा सकता है।
निःसंदेह गौशाला गाय का रखरखाव रखने के लिए उत्तम जगह है लेकिन हम सभी उनकी स्थितियों से वाकिब हैं और यह बेहद खर्चीला भी है। गोपालक भी बेचारी दूध देना बंद कर चुकी गायों को बेसहारा छोड़ जाते हैं। वे भी दोषी नहीं है क्योंकि एक पशु को पालने का खर्च 15 से 20 हज़ार रुपये वार्षिक होता है जो गरीब किसानों के लिए असंभव है। काऊ इंस्पेक्टर कई जाने और पैसा बचा सकते हैं। हक़ीक़त में वे एक सरकारी गौरक्षक होंगे जो कई तरह से इंसानों और गायों की सेवा करेंगे और इससे दोनों की ही जानें भी बचेंगी।