हर मुद्दे पर रोशनी डालती एक बेहद खूबसूरत किताब- हाशिए पर रौशनी
हाशिए पर रौशनी किताब के लेखक ध्रुव गुप्त जी को मैं फेसबुक के माध्यम से जानता हूँ और उनसे एक ही मुलाकात हुई है अब तक दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले में, केवल 5 मिनट की। फेसबुक के वे मेरे सबसे पसंदीदा लेखक हैं। वे फेसबुक के ध्रुव तारा हैं। उनसे मेरी ही तरह कई नए लेखक सीखते हैं। वे बेहद सरल भाषा में निडरता और निष्पक्षता के साथ लिखते हैं। वे कवि भी हैं, शायर भी हैं और लेखक भी। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी एक भूतपूर्व पुलिस अधिकारी हैं। वे देश की एकता और अखंडता के लिए चिंतित रहते हैं जो हमें उनका दीवाना बनाता है। यह सभी उनकी विशेषता उनकी इस किताब में भी दिखती हैं।
किताब की शुरुआत परियों की कहानी और सुन लो, सुनाता हूँ तुमको कहानी से होती है जिसमें लेखक हमें एक बड़े की तरह परियों की कहानी और कहानियों का महत्व समझाते हैं। मुग़ल काल की दो महिलाओं का जिक्र करते उनके दो अध्याय अनारकली और औरंगजेब की बेटी जेबुन्निसा का पूरा पूरा वर्णन करते हैं।
उसके बाद वे हमें 3 भुला दिये गए स्वतंत्रता सेनानियों के ज़िक्र बेहद साफ़गोई से करते हैं- मौलवी बाक़िर, उदा देवी और पीर अली खान।
“समुद्र मंथन एक शोषण और छल की कथा” को आर्य और अनार्य की, सामन्तवाद, पूंजीवाद और गरीब तथा दलितों के साथ हुए अन्याय की कहानी बताते हैं। यह बेहद ही साफ़गोई और बिना लागलपेट के लिखा गया अध्याय है जिसमें लेखक की धार्मिक आस्था कहीं भी आड़े नहीं आती। जो बताता है कि वह पाठकों के लिए किस कदर समर्पित हैं। फिर जीसस और बौद्ध भिक्षुणियों पर दो अध्याय भी बहुत पड़ताल के बाद लिखें गए हैं।
संगीत, भाषा, फिल्मों पर लिखे गए अध्याय भी बेहद खूबसूरत बन पड़े हैं और हमारे ज्ञान में इज़ाफ़ा करते हैं। आखरी के अध्यायों में कृष्ण और राधा का पुनर्मिलन, दुर्गा बनाम महिषासुर, हम क्यों करते हैं सरस्वती पूजा, गणेश होने का अर्थ तथा ईश्वर और हम, हमें धर्म के द्वारा शिक्षित करने का प्रयास है। अंत में लेखक इतनी संवेदनहीन क्यों है हमारी पुलिस? जैसे अध्याय में अपने डिपार्टमेंट की संवेदनहीनता और उसके निराकरण के उपाय बताते हैं।