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एक हट्टे कट्टे युवा को उसके माता पिता मेरे पास लाए, समस्या यह थी कि वह डरपोक था। उसे उससे बहुत कमज़ोर और कम उम्र के लड़के डरा धमकाकर पैसे ऐंठते थे, उसका मजाक बनाते थे और उसकी चीजे छीन लेते थे। माता पिता की डिमांड थी कि मैं ऐसी कोई दवाई लिख दूँ जिससे उनके बेटे का डर भाग जाए और वह बहादुर बन जाए। मैंने कहा आप बताइए अगर ऐसा होता कि एक गोली गटकाने से कोई वीर और बहादुर बन जाता तो क्या सरकारें अपने आम नागरिकों को वह गोली खिलाकर सैनिक न बना लेती, वे क्यों सैनिकों की ट्रेनिंग पर करोड़ों अरबों रुपये खर्च करती? आखिर फिर क्यों न हर मां बाप अपनेे बच्चों को शूरवीर बनाने के लिए पोलियो की ड्रॉप की तरह वीरता की ड्रॉप भी पिलाने लगते।

मैंने देखा है कि डिप्रेशन, तनाव, डर के रोगी दवाओं के लिए इधर उधर भटकते रहते हैं और उनके चिकित्सक भी उनकी समस्या सुनते ही दवाओं का लंबा सा प्रेस्क्रिप्शन लिख देते हैं…प्रतिवर्ष लगभग 200 मिलियन पर्चे! लेकिन प्रिय चिकित्सकों आप यह क्यों नहीं सोचते कि इन रोगियों के विचारों में बदलाव उन केमिकल की कमी के कारण थोड़े ही हुए हैं जो आप इन्हें दवाइयों में दे रहे हैं। अधिकांश केस में रोगियों के दिमाग के केमिकल को शांत किया जाता है लेकिन असर खत्म होते ही बुरे ।विचार फिर अपना असर दिखाने लगते हैं।अर्थात अब रोगी को अगर ठीक होना है तो उसे अपने विचारों को बदलने के साथ ही इन दवाओं से भी पीछा छुड़ाना पड़ेगा। हाँ, यह सत्य है कि एन्टी डिप्रेशेन्ट बहुत घातक और जटिल अवसाद में जीवनरक्षक की तरह काम करती हैं लेकिन कम घातक या सामान्य अवसाद को यह घातक भी बना सकती हैं।

आपके विचारों को दवाई नहीं बदल सकती, नहीं बदल सकती…नहीं बदल सकती, यह बात आप गांठ बांधले। विचारों को बदलने का बीड़ा आपको ही उठाना है। इसके लिए आप स्वयं विचारों को परिवर्तित करें, किताबों की मदद लें, प्रोफेशनल की मदद लें, धर्म की मदद लें, सच्चे मित्रों की मदद लें।

अंत में याद रखें कि आप वही हैं जो आपके विचार हैं क्योंकि हड्डियां, मांस और खून तो सभी मनुष्यों के शरीर में एक जैसा ही है।


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4 साल पहले वह दिसंबर की कड़कती सर्दी की सुबह थी। मैं क्लीनिक पर अपने रोज़ाना के तय समय 9 बजे ही पहुंचा। दरवाज़े पर मेरा इंतज़ार दिल्ली से सुबह की फ्लाइट से आए एक धनाढ्य पिता और उनकी पुत्री कर रहे थे। वे मेरी किताब “बीमार होना भूल जाइए” पढ़ कर आए थे जो उन्हें उनके एक धर्म गुरु ने पढ़ने की सलाह दी थी। मेरी वह रोगी बहुत ही ज्यादा पढ़ी लिखी थी, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट। मैंने उनसे उनकी समस्या जानना चाही तो उन्होंने बताया कि वह डिप्रेशन के दौर से गुज़र रही है पिछले कुछ महीनों से। सुसाइड तक करने का उसका मन हो चुका है दो से तीन बार। बेवजह रोना आता है, कुछ अच्छा नहीं लगता, अकेले और अंधेरे में रहने को दिल चाहता है। मैंने पूछा क्यों हो रहा है ये सब? उन्होंने जवाब दिया कि हमने कुछ महीनों पहले एक गायनेकोलॉजिस्ट को दिखाया था पीरियड की मामूली समस्या को लेकर, उन्होंने कुछ जांच करवा कर एक नये रहस्य का उद्घाटन किया कि भविष्य में उसके मां बनने की संभावना 50% ही है (एन्टी मुलेरियन हार्मोन की रीडिंग और पॉलीसिस्टिक ओवरी की सामान्य सी समस्या के आधार पर)। मैंने कहा कि इसमें आप इतनी चिंता ले रही हैं। उसने कहा क्या इतनी बड़ी बात चिंता करने लायक नहीं है डॉक्टर? मैंने कहा यदि आप आत्महत्या का प्रयास करती हैं और उसमें सफल हो जाती हैं तो पता है तब आपके मां नही बनने की संभावना निःसंदेह 100% हो जाएगी। क्या आपके जीवित रहे बगैर आपकी समस्या खत्म हो सकती है, क्या आपका तनाव इस माँ बनने की संभावना को 50 से और कम नहीं कर देगा। सच कहूं तो हमारे पास उपचार के लिए आने वाली लगभग 60% निःसंतान दंपत्तियों की 100% जांचें बिल्कुल सामान्य होती हैं लेकिन फिर भी उन्हें संतान नहीं होती और कइयों की जांचें देखकर आश्चर्य होता है कि इन्हें संतान कैसे हो गई इतनी जटिलताओं के बावजूद। मेडिकल साइंस में ऐसे भी अनगिनत केस हैं जिन्हें संतान टुबैकटॉमी करवाने के के बाद हुई हैं। यक़ीन मानिए मेरी उस अतिज्ञानी रोगी का यही बातें इलाज थी। उसे भविष्य की बेवजह की चिंताओं ने घेर लिया था और वह उसके समाधान के लिए खुद से सवाल भी नहीं कर रही थी, समाधान के लिए कुछ ऑन पेपर तैयारी किये बगैर अपनी जान देकर समस्या से मुंह मोड़ रही थी।और उस डरावने चिकित्सक की बातों को 100% सत्य साबित करने वाली थी। अभी यह लेख लिखने का विचार मुझे उसके मेल को पढ़कर ही आया जब उसने खुश खबरी दी कि- “आज मुझे ईश्वर ने एक परी जैसी सुंदर बेटी दी है…शुक्रिया डॉक्टर उस वक़्त मेरे बेवजह के डर को खत्म करने में मेरी मदद करने के लिए।”

मेरे पास आने वाले अधिकांश तनाव और डिप्रेशन की चिंता के रोगी कभी समस्या की जड़ में नही जाते न उसके हल के लिए कोई ऑन पेपर वर्क करते हैं। सिर्फ घुलते रहते हैं, सोचते रहते हैं, रोते बिलखते रहते हैं, अंधेरे में दबे छुपे और कुचले रहते हैं… और अन्ततः बर्बाद हो जाते हैं।

एक बार एक बहुत सुंदर युवती ने अपने डिप्रेशन की वजह यह बताई कि उसे डर है कि उसकी सुंदरता भविष्य में कहीं चली न जाए। जबकि उसे ईश्वर ने वर्तमान में इतनी सुंदरता दी थी कि यदि वह 100 कुरूप कन्याओं में बांट दी जाए तो वे भी सुंदर हो जाए लेकिन भविष्य का बेवजह का डर उसके चेहरे का नूर छीन रहा था और उसकी खूबसूरती को घटा रहा था। उसे ज़रूरत थी तो ईश्वर पर आस्था की और उन युवतियों को देखकर सुकून पाने कि जो उससे कई हज़ार गुना कम सुंदर लेकिन खुश थी।

कुछ हासिल कर के उसे खोने का डर, बहुत बुरे हालात के आजाने का डर, कुछ बुरा घटित हो जाने का डर, कुछ हासिल न हो पाने का डर, किसी बीमारी के हो जाने का डर, संतान को खो देने का डर, जीवनसाथी को खो देने का डर…आदि, आदि। ऐसे कई भविष्य के बेवजह के डर हमसे हमारा वर्तमान छीन लेते हैं और देदेते हैं एक बुरा भविष्य जो हकीकत में एक सुनहरा और सुंदर भविष्य था जिसे हमारी चिंताओं की झुर्रियों ने कुरूप कर दिया है। क्या आप अपने भविष्य को सुंदर बनाना चाहते हैं तो उसके लिए सारी चिंताएं त्याग दीजिये और ज़ोर से कहिए “ईश्वर ने चाहा तो, जो होगा अच्छा ही होगा।” इन शब्दों का उबटन अपने भविष्य पर रोज़ाना लगाएं और बनाए अपने भविष्य को खूबसूरत…


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मैंने तीन साल पहले एक किताब लिखी थी “सोचिये और स्वस्थ रहिये”, सौभाग्य से वह बहुत ही ज्यादा सफल रही। दो साल बाद उसके तीसरे संस्करण में मैंने एक अध्याय जोड़ा था “डर से इतना भी न डरे”। यह अध्याय पाठकों को बहुत पसंद आया। क्यों? क्योंकि हम सभी मनुष्यों में एक गुण अवश्य होता है कि ‘हम डरते हैं’ इसलिए सभी पाठक उससे कनेक्ट हुए। डर जब हद से बाहर हो जाता है तो फिर मनुष्यों का एक अवगुण बन जाता है। डर से निजात दिलाने वाले व्यक्ति को हम नेता, गुरु, क्रांतिकारी और अवतार तक कह देते हैं। हर वह व्यक्ति मसीहा बन जाता है हमारे लिए जो हमें डर से बचा ले। मेरे कई पाठकों ने मुझसे पूछा था कि इस अध्याय का नाम “डर से बिल्कुल भी न डरे” क्यों नहीं रखा आपने? तो मेरा जवाब था कि यह अवस्था आ ही नहीं सकती कि इंसान डरना पूर्णतः छोड़ दें। कई बार जीवित रहने के लिये डर ज़रूरी भी हैं जैसे आग से डर, एक विक्षिप्त आग में कूद जाएगा बिना डरे तो क्या होगा? कोई 100 फ़ीट गहराई में बिना डरे छलांग लगा दे तो? इसलिए डर ज़रूरी है लेकिन बेवजह के डर घातक हैं। जैसे इंसानों से डर, भीड़ से डर, संख्या से डर, भविष्य का डर, मर जाने का डर, कोई अनहोनी हो जाने का डर, अंधेरे से डर, फूलों से डर, कीटों से डर…आदि।

डर को हराकर ही मनुष्य अपने जीवन और संसार का आनंद ले सकता है। डर को हराने के लिए क्या करना चाहिए? यह एक प्रश्न है जो अधिकांश डरपोक कभी पूछते नहीं और ज़िन्दगी को नर्क बना लेते हैं। डर को हराने का एक ही मूलमंत्र है- “डर पर जोरदार प्रहार या डर से मुक़ाबला”। डर से दूर भागकर तो आप और ज्यादा डरते जाएंगे, और भीरु तथा, और ज्यादा डरपोक बनते जाएंगे। एक उदाहरण से समझिए- आप अपने घर में अकेले हैं, बिजली भी गुल है, रात के डेढ़ बजे हैं, सब तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है… इतने में किचन से एक बर्तन के गिरने की जोरदार आवाज़ आती है। आप इस स्थिति में अगर रजाई औढकर और डरकर दुबके ही रहेंगे तो आपका डर बढ़ता ही जाएगा। यदि ऐसा रोज़ होता रहा तो आप डर के मारे बीमार हो जाएंगे। अब दूसरी तरफ अगर आप बिस्तर छोड़कर, टॉर्च उठाकर किचन की तरफ जाते हैं और वहां देखते हैं तो पाते हैं कि वहां एक मासूम सी बिल्ली थी और उसने दूध को पाने के लिए यह बर्तन गिराया था। अब आपका डर गायब हो जाएगा और भविष्य की ऐसीे ही किसी घटना से आपको डरने से बचाएगा। डरकर भागजाने से डर हावी होता चला जाता है।

डरपोक लोगों के साथ रहने से डर अमरबेल की तरह बढ़ता है और बहादुरों के साथ से यह छुईमुई की तरह मूर्छित हो जाता है। डरावने प्रोग्राम, शक़ बढ़ाते टीवी शो, नकारात्मक खबरों, मैसेज और वीडियो का अंबार आपके डर के लिए खाद का काम करेंगे और इसे दिन दूना रात चौगुना बढ़ाएंगे। डर को हराना है तो इनसे दूर रहें। दूसरों से प्रेम और करुणा तथा ईश्वर पर आस्था बेवजह के डरों को जड़ से नष्ट कर देते हैं।


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वह शायद मेरे क्लीनिकल प्रैक्टिस का दूसरा बसंत होगा। दबंग से दिखने वाले गाँव के एक रोगी मेरे पास आये। उनके पैर में एक नासूर बन गया था। वे उससे लगभग दो साल से परेशान थे। उन्हें शुगर नहीं थी और चिकित्सकों को उसकी वजह कभी पता नहीं चली। मैंने पूछा कि आपको क्या लगता है कि क्यों हुआ आपको यह ज़ख़्म? उन्होंने फ़ौरन जवाब दिया, “डॉ साहब यह मेरे पाप की सज़ा है, जो मुझे दी है ईश्वर ने। जब मैं गांव का सरपंच था, मुझे बताया कुछ चुगलखोरों ने कि मेरे खिलाफ गाँव का एक गरीब व्यक्ति कुछ अपशब्द कह रहा था (जबकि उसने कुछ नहीं कहा था)। मैं उसके खेत पर गया, उस वक़्त वह खाना खा रहा था, मैंने उस बेचारे और उसके दस या बारह साल के बच्चे को एक एक ठोकर मारी इसी पैर से, जिससे वे खाना खाते खाते लुढ़क कर दूर गिर गए। वे बेचारे कुछ समझते इससे पहले ही मैंने उन्हें बहुत सी गालियां दीं। वे बिना कुछ प्रतिक्रिया दिए ज़मीन पर ही बैठे रहे और उल्टे मुझसे ही माफी मांगते रहे। उनके खाने की थाली भी दूर गिर गई थी। मेरे साथ गए हुए लोग बहुत खुश हुए। मेरा भी घमंड कुछ शांत हुआ। लेकिन मैं जानता था कि मैंने गलत किया है। मेरी सरपंची खत्म होने से पहले ही मुझे यह ज़ख़्म हुआ उसी पैर में जिससे मैंने उन मासूमों को ठोकर मारी थी। यह मेरा राक्षसी कर्म मुझे भुगतना ही है डॉ. साहब… शायद जीवनभर।”

ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जिनमें लोग क्षणिक आनंद के लिए गलत काम करते हैं और पश्चाताप की आग में जीवन भर तपते और सुलगते रहते हैं। वे सरपंच जी आश्चर्यजनक रूप से ठीक तभी हुए जब उन्होंने उस गरीब व्यक्ति और उसके बच्चे से माफी मांग ली और उन मासूमों ने उन्हें फ़ौरन बिना शर्त माफ़ भी कर दिया। यह मेरे प्रैक्टिस का वह बेहतरीन और हैरतअंगेज़ केस था जिसमें कि रोगी का शारीरिक घाव जो कि मानसिक वेदना से उत्पन्न हुआ था और मानसिक शांति से ही ठीक हुआ था। इसने मुझे सोचने पर मजबूर किया कि चिकित्सा केवल वही नहीं है जो किताबों में लिखी है और जो चिकित्सा-महाविद्यालयों में पढ़ाई जाती है। चिकित्सा तो मन और शरीर को स्वस्थ करने का नाम है।

दंगों, फसादों, लूट, डकैती, मारकाट, तोड़फोड़, जानवरों की निर्मम हत्या, बलात्कार, परिवार वालों के साथ क्रूर बर्ताव करने वाले कभी खुश और सेहतमंद नहीं रह सकते। वे अंदर से सड़े हुए होंगे। वे अकड़ते हुए चाहे चलते हो लेकिन उनकी आत्माएं पाप के बोझ तले झुकी हुई होगी।

आपके साथ भी यदि ऐसे ही बुरे कर्मों का साथ लग गया है और अशांति जीने नहीं दे रही है तो आप क्या करें? आप सबसे पहले यदि मुम्किन हो तो पीड़ितों से क्षमा मांग लें, फिर आगे से ऐसे गलत कार्यों को करने से तौबा कर लें, और बुरे कामों के बदले अच्छे काम करने लगें क्योंकि आपके पुण्य आपके पापों (गुनाहों) को धो देते हैं। यह सब बहुत ज़रूरी है मन की शांति के लिए… यह नेक कार्यों की शक्ति उतनी ही सच है जितनी कि गुरुत्वाकर्षण की शक्ति। दोनों आपको दिखाई नहीं देंगे लेकिन दोनों को आप महसूस कर सकते हैं।


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तनाव का सदुपयोग करें

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तनाव मनुष्य का एक ज़रूरी गुण है। आप शायद चोक गए होंगे या समझ रहे होंगे कि यहाँ कोई मिसप्रिंट हुआ है। नहीं प्रिय पाठकों आपने सही पढ़ा है कि तनाव या चिंता हम मनुष्यों का एक आवश्यक गुण है। मैं तो यह भी कहता हूँ कि तनाव के बिना मानव जाति कब की विलुप्त हो चुकी होती। तनाव तब अवगुण या घातक हो जाता है जब आपको इससे निपटना न आए या आप इससे हार मानने लगें। तनाव जब हमारे मन, मस्तिष्क और आत्मा पर हावी होने लगता है तब यह समस्या उत्पन्न करता है, जानलेवा समस्याएं। अच्छा आप मुझे यह बताइये कि कौन सांप से ज्यादा डरेगा- वह व्यक्ति जिसे सिर्फ सांप के विष के जानलेवा गुण बताए गए हैं या वह व्यक्ति जिसे सांप से बचना, विषैले और विषहिन में फर्क करना और सांप के विष की प्राथमिक चिकित्सा सिखाई गई हो? निश्चित ही वह व्यक्ति ज्यादा डरेगा जिसे डराया तो बहुत गया लेकिन उससे निपटना नहीं सिखाया गया। तनाव के बारे में भी यही होता है कि हमें सब डराते हैं लेकिन लड़ना या उससे निपटना नहीं सिखाते। आग से कोई व्यक्ति जल सकता है और कोई उससे खाना पका लेगा, जिसे आग को नियंत्रित करना आता है। तो समस्या आग नहीं है समस्या है उसे नियंत्रण नहीं कर पाने की हमारी असमर्थता। चाकू से एक व्यक्ति अपना हाथ काट सकता है लेकिन सावधानी से वही व्यक्ति कई सारे सृजनात्मक कार्य भी कर सकता है। यहाँ भी समस्या चाकू नहीं है समस्या तो उसके उपयोग में की गई लापरवाही है।

मानव विकास यात्रा में तनाव ने ही इंसानों को विकास या परिवर्तन करना सिखाया है। तनाव और भय ने ही उसे गुफा में रहना सिखाया, भोजन की फिक्र ने उसे शिकार करना सिखाया और फिर कृषि और पशुपालन करने के लिए प्रेरित किया। बीमारियों से डर और उससे उत्पन्न तनाव ने उसे जड़ी बूटियों से लेकर सर्जरी तक करना सिखाया। यह तनाव ही है जो हमसे हमारा बेहतर करवाता है… तनाव के बिना तो हमारा जीवन एक ही ढर्रे पर चलता रहता और हम इंसान ‘सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट’ के सिद्धांत के अनुसार नष्ट या विलुप्त हो गए होते। हमने कई बार लोगों को कहते सुना होगा कि ” मैं प्रेशर में ही अपना बेस्ट दे पाता हूँ।” याद कीजिए अपने परीक्षा के दिनों को जब हमारी याद करने की क्षमता आम दिनों से कई गुना अधिक बढ़ जाती थी, क्यों क्योंकि हमारा तनाव हम से हमारा सर्वश्रेष्ठ करवा रहा था। तो तनाव यहाँ पर हमारे लिए लाभदायक सिद्ध हो रहा है। आप रेकॉर्ड उठा कर देख लीजिए कि खिलाड़ियों ने अपना सर्वश्रेष्ठ ओलंपिक खेलों या किसी अन्य बड़ी प्रतियोगिता में ही दिया है। जितनी बड़ी प्रतियोगिता उतना बड़ा तनाव और उतना ही बेहतरीन प्रदर्शन। और याद रखिए कोयला पृथ्वी के गर्भ में दबाव के कारण ही हीरे में बदलता है।

तनाव हमारी उम्र, सेहत, आर्थिक स्थिति, शिक्षा, प्रशिक्षण, सामाजिक स्थिति, सामाजिक माहौल, परिवार के सदस्यों की संख्या आदि सेकड़ो कारकों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए हम सांप को देखकर हमारे बच्चें तनाव से भर जाएंगे जबकि सपेरे के बच्चों को कोई तनाव नही होगा, कई भाइयों वाला व्यक्ति बिना भाई वाले व्यक्ति से ज्यादा असुरक्षित महसूस करेगा। एक रिसर्च में पाया गया कि वे नर्स कम तनाव और ज्यादा खुश थी जो कि तनावपूर्ण आई सी यु में ड्यूटी करती थी बनिस्बत उनके जो कम तनावपूर्ण अन्य वार्डों में ड्यूटी करती थी। वकीलों के समूहों पर भी ऐसा ही परिणाम प्राप्त हुआ अर्थात वह वकील ज्यादा खुश रहते हैं जो ज्यादा जटिल और तनावपूर्ण केसेस लड़ते हैं। यह भी देखा गया है कि अधिक तनावपूर्ण कार्य करने वाले प्रोफेशनल जीवन मे ज्यादा खुश और ज्यादा सेहतमंद होते हैं जैसे डॉक्टर, पायलट, सैनिक, नर्स, खोजी पत्रकार, वकील आदि।

हम महान भी उन्हीं लोगों को मानते हैं जो तनाव में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, आखिर आप ही बताइए कि हम विराट कोहली को इतना क्यों चाहने लगे हैं? हाँ, इसीलिए न कि वह दबाव में अच्छा खेलते हैं और अपनी टीम को मैच जीता देते हैं।

एक सिनेमा हॉल में अचानक से सांप आ जाए और फ़िल्म देखने वाले सभी आम लोग हो तो क्या होगा? हाँ, भगदड़ मच जाएगी और सांप के ज़हर से ज्यादा जानें भगदड़ ले लेगी। अब आप इमेजिन करिये कि उस सिनेमा हॉल में सभी सपेरे बैठें हो और सांप आए तो क्या होगा? क्या सारा परिदृश्य बदल नहीं जाएगा? अब वे सपेरे सांप को पकड़ने के लिए दौड़ पड़ेंगे। तो समस्या सांप नहीं थी, समस्या तो सांप को नियंत्रित न कर पाने अक्षमता की थी। यदि उन आम लोगों को भी सांप को नियंत्रित करने का प्रशिक्षण दिया जाता तो वे भगदड़ कभी न मचाते। वैसे ही समस्या तनाव नहीं है समस्या है तनाव को मैनेज न कर पाना। क्योंकि हमने उसे मैनेज करना सीखा ही नहीं। वैसे ही एक आम अप्रशिक्षित व्यक्ति गहरे समुद्र में डूब जाएगा और वहीं एक पेशेवर गौताखोर उस गहराई से मोती निकालकर ले आएगा। यहाँ भी समस्या समुद्र नहीं है व्यक्ति का अप्रशिक्षित होना है।

तनाव से युद्ध कैसे करें-

1. तनाव का कारण पता करें-
हम हमेशा हड़बड़ी में रहते हैं, हम जल्दी में हैं, क्यों? पता नहीं। हम परेशान हैं, हम चिंतित हैं, हम अवसाद में हैं, हम चिढ़चिढ़े हो गए हैं, हम क्रोधित छवि बना चुके हैं, हम बहुत अधिक तनावग्रस्त हैं….क्यों? क्योंकि हम खुद से कभी नहीं पूछते कि ‘आखिर क्यों’।

मेरे पास आने वाले मानसिक समस्या से पीढ़ित रोगी से मैं पहली सीटिंग या पहले परामर्श सेशन में पूछता हूँ कि आप आखिर रोगी क्यों बने ? क्यों आप चितिंत हैं या क्यों आप डिप्रेशन से घिर गये या क्यों आप अपना जीवन समाप्त करना चाहता है या क्यों आप उन लोगों पर क्रोधित होने लगे हैं जो आपसे प्रेम करते हैं या क्यों आप डरने लगे हैं उनसे भी जिनसे कोई नहीं डरता… आदि। मैं हैरान हो जाता हूँ कि अधिकांश को पता ही नहीं होता कि वे क्यों परेशान हैं और कई तो ऐसे भी होते हैं जो केवल इसलिए परेशान होते हैं कि कुछ साल पहले एक परिस्थिति आई थी जिसमें वे तनावग्रस्त हुए थे और इसीलिए वे आज भी हैं तनाव से लबरेज़ जबकि वे खुद जानते हैं कि अब परिस्थिति बिल्कुल बदल चुकी है।

अधिकांश रोगी कभी खुद से यह सवाल नहीं पूछते कि क्यों मैं इन सब में उलझ रहा हूँ? क्या उसे इतना उलझने की आवश्यकता है? आप भी किसी चिंता से परेशान हैं तो खुद से सवाल करें कि आखिर मैं क्यों चिंतित हूँ? क्यों मुझे चिंतित होने की आवश्यकता हैं? क्या इसका हल नहीं हैं? याद रखें आपको जवाब तभी मिलता है जब आप सवाल पूछते हैं। बिना सवाल के जवाब का अस्तित्व नहीं है। प्रश्न की उपस्थिति उत्तर के अस्तित्व के लिये नितांत आवश्यक हैं। और याद रखें कि सवाल समाधान की पहली सीढ़ी है, सवाल के बिना समाधान नहीं हो सकता।

बहरहाल हम तनाव की वजह को जाने समझे कि आखिर हम क्यों तनाव महसूस कर रहे हैं। तनाव के लक्षण आपको कब महसूस हो रहे हैं, समय, तारीख़ और स्थान तथा किसी से मुलाक़ात के बाद या पहले…इससे आपको तनाव की वजह पता करने में मदद मिलेगी। जैसे यदि तनाव सोमवार को ऑफिस जाने से पहले हो रहा है और उस रात आपको नींद भी नहीं आती तो आप समझ सकते हैं कि आप काम का तनाव ले रहे हैं या बॉस से डर रहे हैं। यदि महीने के अंत में तनाव महसूस कर रहे हैं तो आपका तनाव खर्च को लेकर है। यदि तनाव आपको सुबह है, बच्चों के स्कूल जाते समय, तो तनाव यह है कि आप बच्चों को भेजने में अक़्सर लेट हो जाती हैं इसलिए यह आपको परेशान कर रहा है।

2. प्रार्थना करें और सब कार्यों को ईश्वर के सुपुर्द करें जो उसके हैं। अक़्सर लोग इसलिए तनावपूर्ण होते हैं क्योंकि वे ईश्वर के काम भी खुद करना चाहते हैं। मैंने पाया है कि यदि तनावग्रस्त व्यक्ति को यह समझा दिया जाए कि ईश्वर के क्या काम है और हम इंसानों के क्या हैं और उसे सिर्फ उसके कार्यों पर ध्यान देना चाहिए ईश्वर के कार्यों के लिए निश्चिंत रहना चाहिए तो वह व्यक्ति तनावमुक्त हो जाता है।

मेरे केरियर के शुरुआती दौर में मुझे सरकारी चिकित्सक की नौकरी करना पड़ी और गाँव के गरीब परिवार से होने के कारण सभी का दबाव था कि मैं वह नौकरी जॉइन करूँ और उसी में अपना जीवन लगा दूं ताकि ज़िन्दगी गुज़ारने की परेशानी न रहे। मैंने उसे अनमने मन से जॉइन किया। मैं उससे बिल्कुल संतुष्ट नहीं था। मैं कशमकश में और परेशानी में था कि इसे कैसे छोडू और वह करूँ जो मेरा दिल चाह रहा है। एक बार मेरी मुलाकात मेरे दोस्त से हुई जो मुझसे उम्र में काफी बड़े थे लेकिन हम दोनों एक दूसरे को अच्छे से समझते थे (मेरे अधिकांश दोस्त मुझसे उम्र में बड़े ही हैं)। उन्होंने मेरे परेशान चेहरे की वजह पूछी। मैंने उन्हें बताया कि मैं सरकारी नौकरी नहीं करना चाहता, अपनी खुद की क्लीनिक और राइटिंग का काम करना चाहता हूँ लेकिन सब कह रहे हैं कि सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद अगर प्राइवेट प्रैक्टिस नही चली तो फिर कहीं के नहीं रहोगे। उन्होंने मुझे बताया कि इंसानों के डर, परेशानी, चिंता और तनाव के मूल 3 कारण हैं- 1. रिज़्क़ (पोषण एवं जीवनुपयोगी वस्तु का इंतज़ाम) 2. बीमारी और 3. मौत, और ताज्जुब की बात है कि यह तीनों ही बातें खुदा के कब्ज़े में हैं (इस्लाम की मूल शिक्षा के अनुसार उन्होंने मुझे बताया था कि रिज़्क़, मौत और बीमारी सिर्फ ईश्वर के आदेश के अधीन है)। उनकी यह बात मेरे लिए एक सुकून का महाडोज़ साबित हुई और मैं भविष्य की चिन्ताओं से उबरकर निर्णय ले पाया, मैंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया …और मेरा निर्णय बिल्कुल सही साबित हुआ (अभी तक तो और ईश्वर से उम्मीद है कि वह आगे भी मेरे लिए बेहतर ही करेगा)।

हमारी उस बातचीत के बाद मैं बिल्कुल नया हो गया एक नया इंसान जैसे पहले एक अलग अबरार मुल्तानी था और उनकी बातों को सुनने के बाद एक अलग अबरार मुल्तानी…और मुझे अपनी प्रैक्टिस में डर और चिन्ताओं में डूबे रोगियों को यह बात बताकर ठीक करने में बहुत मदद मिली। मुझे ताज्जुब होता है कि मुझे मानसिक रोगों (तनाव आदि) के उपचार की यह विधि मेरे एक दोस्त ने बताई जो कि मेडिकल का जानकार नहीं था और मेरे मेडिकल कॉलेज में इस बारे में एक भी कक्षा नहीं लगी…पता नहीं यह विज्ञान कब मन की चिकित्सा करना सीखेगा और फिर सिखाएगा…तो आप भी तनाव, चिंता और डर से निजात पाना चाहते हैं तो ईश्वर का काम ईश्वर को करने दें और आप केवल अपने काम पर ध्यान दें…

3. दोस्तों के साथ रहें, दोस्तों से अपने मन की बात बताएं। उनसे अपनी समस्या का समाधान करने के लिए विचार विमर्श करे। मेरा मानना है कि अगर हम सच्चे दोस्त नहीं बनाएँगें तो फिर इंतजार करें दवाइयां आपकी दोस्त बन जाएगी, जो कि बिलकुल भी शुभ संकेत नहीं है।

4. प्रकृति की शरण में आजाइये। प्रकृति से जुड़ने के साथ हमारे अंदर एक सकारात्मकता उत्पन्न होती है। आप हरे झाड़, मुलायम और शीतल घांस, झील की हिलोरे मारती लहरे, भीगो कर फिर भाग जाने वाली समुद्र की लहरें, धुंध में ढकी पहाड़ियों की चोटियां आपको सुकून से भरदेंगी। झरने देखकर आपका तनाव भरभराकर झड़ जाएगा।

5. ज़िन्दगी को आसान बनाए- खालिद हुसैनी की विश्व प्रसिद्ध किताब ‘काइट रनर’ का पात्र अपने घर के नौकर के हमउम्र बच्चे को अपनी लिखी एक कहानी सुनाता है कि, “एक आदमी को एक जादुई प्याला मिल जाता है, उस प्याले में जब भी उसके आँसू गिरते तो वे मोतियों में बदल जाते। लेकिन वह आदमी बड़ा खुश मिजाज़ था। मोती पाने के लिए वह उदास रहने लगा और रोकर आंसुओं से मोती बनाने लगा। हर वक्त गमगीन होने के बहाने ढूंढने लगा। लालच बढ़ता गया। आखिर में वह अपने आंसुओं से निर्मित मोतियों के ढेर पर बैठा रो रहा था, उसके हाथ में चाकू था और पास में उसकी बीवी की कटी हुई लाश पड़ी थी।”

कहानी सुनाकर वह उस गरीब बच्चे से पूछता है कि, “कैसी लगी कहानी?” तो वह बच्चा कहता है कि, “कहानी तो अच्छी थी लेकिन आंसुओं को लाने के लिए उस आदमी को क्या प्याज़ नहीं मिल सकती थी…गमगीन होने और बीवी को कत्ल करने की क्या ज़रूरत थी?

हम भी ऐसे ही हैं ज़िन्दगी के आसान कामों को करने के लिए जटिल रास्ता अपना लेते हैं, प्याज़ की जगह चाकू का प्रयोग करने लगते हैं।

6. पालतू जानवर का साथ भी आपको तनावमुक्त रखेगा।

7. किसी प्रोफेशनल कॉउंसलर से कॉउंसलिंग भी आपकी बहुत मदद करेगी।

8. नकारात्मक लोगों और खबरों से दूरी बना ले।

9. खुद से बात करें। खुद को बताएं कि स्थिति उतनी खराब नहीं है, खुद से कहें कि आप मे वह शक्ति है ऐसी स्थिति से निकलने की या निपटने की, खुद को याद दिलाएं कि पहले भी आप इससे ज्यादा परेशान स्थिति से निकल चुके हैं।

10. कसरत या वर्कऑउट करें। कसरत वह औषधि है जो हमारे शरीर को थका कर मन को शांत कर देती हैं। आपने देखा होगा कि आम लोगों की तुलना में पहलवानों में तनाव कम होता है, वजह है उनकी कसरत।

11. सबसे बड़ी बात कि खुद को बदलने के लिए तैयार रहें। स्थिति को भी बदलने का सामर्थ्य पैदा करें। स्थिति के अनुसार न बदले बल्कि स्थिति को बदलने की शक्ति उत्पन्न करें… और आप कर सकते हैं।

12. सब्र से काम ले क्योंकि हमारी अधिकांश समस्या समय के साथ स्वतः नष्ट हो जाती है।

13.कुछ आयुर्वेद दवाई भी आपकी काफी मदद कर सकती हैं जो किसी योग्य चिकित्सक की देख रेख में ले, जैसे- तगर, ब्राह्मी, अश्वगंधा, सर्पगंधा, शंखपुष्पी आदि।


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20-22 साल जो जीना है जी लीजिये , लोगों से जितना मिलना जुलना है मिल लीजिये | तब तक मशीने , रोबोट्स आदमी को replace कर चुके होंगे | उच्च और मध्य वर्ग अवसादग्रस्त होगा और निम्न वर्ग अभिशप्त … विकास की यही दिशा है |

डीप ब्लू कम्प्यूटर से तो कॉस्प्रोव ने तो मुकाबला कर लिया था अब जो रोबोट परीक्षित हो चुका है उसने दुनिया के अब तक के सबसे कठिन माने जाने वाले खेल जिसे शायद GO कहते है उस के सबसे बड़े प्लेयर जिसे इस फील्ड में जीनियस की संज्ञा दी गई है उसे लगातार 6 बार हरा दिया है हालांकि उसने पहला गेम जीता था | उसके बाद रोबोट के कृत्रिम इंटेलिजेंस सिस्टम ने खुद को स्वयं परिष्कृत किया और तब से लगातार उस जीनियस को हरा रहा है | अब उस खिलाड़ी ने रोबोट से हार मान ली है |

मनुष्य की मेधा पर फाइनली रोबोट ने विजय प्राप्त कर ली है | क्या आपको ऐसे विकास से डर नही लगता | यदि रोबोट आपसे ज्यादा इंटेलिजेंट होकर खुद को आपकी पकड़ से बाहर कर दे और मनमाना अराजक व्यवहार करने लगे … उसका सिस्टम आआपकी हर चाल पहले ही। भांप जाये आप को खतरा मान उड़ा खत्म कर दे | अमरीकी द्रोण आखिर यही तो कर रहे है | उसे एक फोटो या फीचर बता दीजिए वो खरबों लोगों में से ढूंढ कर मार देगा | आप इसे fantasy न समझिये , यह सब तो बहुत सामान्य तकनीकी अनुप्रयोग है | इससे बहुत आगे पहुंच चुका है कम्यूटर विज्ञान ….. फिलहाल आज का सच यही है कि दुनिया के सबसे बड़े जीनियस को वह पराजित कर चुका है तो उसके आगे कौन किस खेत की मूली है | यह सारे जॉब्स खा जायेगा , यह सारा मनोरंजन खा जायेगा | यह जीवन के सारे रंग घोल के पी जायेगा | यह मानवीय भावनाओं को जल्द ही खत्म कर अपने प्रति नई किस्म का भाव जगत रचने वाला है | उसका दुख और सुख ही आपका दुख सुख होगा | वो ही आपको गाना सुनायेगा , चुटकुले सुनायेगा , पेंटिंग बना के दिखायेगा | आज आपको ( मोबाइल , कम्यूटर नेंट ) और ( किसी मनुष्य का साथ ) में से चुनना हो तो किसे चुनेंगे … Mobile से स्थायी विछोह से तुलनीय दूसरा स्थायी विछोह क्या है …

क्रिएटिव फील्ड जिसपे मानव समाज गर्व करता था कि यह गुण आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस कभी नही रिप्लेस किया जा सकता तो सूचनार्थ बता दूं कि नए प्रयोगों ने इसी विचार को सबसे ज्यादा धूसरित किया है | रोबोट वास्तविक् प्रयोगों में हर वो कलाकर्म मनुष्य से बेहतर कर के दिखा चुका है | उसकी पेंटिंग , उसका रंग संयोजन , उसका गाना सब दुनिया के सर्वश्रेष्ठ से बेहतर हो चुका है | मैं अभी कोई विज्ञान की फंतासी नही बता रहा ….. यह सब और न जाने क्या क्या तो हो चुका है |
क्या आप को यदि यह बताया जाए कि आपका बन्द फोन आआपकी बातचीत रिकार्ड कर रहा था तो आप चौंकेंगे नही ….. न चौंकिए मत यह हो रहा था और उसके लिए शायद गूगल ने मुआफी भी मांगी है | आदमी की चैट की एनालिसिस microsoft कर ही रहा था …. मने आपका सब कुछ चंद कम्पनियो के हाथ मे है | निजता फिजता गुजरे जमाने की बहस हो चुकी है | अब तो बहस यह होना चाहिए कि रोबोटिक्स और AI जो भस्मासुर बनाने जा रही है , जो मिथकीय भस्मासुर की तरह मोहिनी पे मोहित भी नही होने वाला उससे कैसे बचा जाए …..

क्या हेल्थ सेक्टर और प्राकृतिक आपदा को छोड़ किसी भी क्षेत्र में दुनिया को विकास की जरूरत है ?

आखिर कितना विकास चाहिए | यह जाबलेस ग्रोथ का समय है , यह सेटल्ड बहस है | इसके बहकावे से समझदार बाहर आ चुके है | हाल तो आदमी को , डिस्प्लेस, रिप्लेस करने के आगे substitute करने तक पहुंच गया है |

जरा सोचिए , आज जिसके पास संसाधन है उसे क्या कमी है | कहने का अर्थ यह कि विकास तो हो चुका है और जरूरत से ज्यादा हो चुका है | बस जो सीमित लोगो की पहुंच में है , उसका लाभ आम लोगो की पहुंच में लाना ज्यादा जरूरी है |

आप क्या सोचते है ….दुनिया भर में बुद्धिजीवी इसी बहस में है , जैसे क्लोनिंग को बन्द किया गया , यह तो उससे भी आगे का विमर्श है …

~पंकज मिश्रा
वरिष्ठ साहित्यकार


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एक प्रतियोगिता में आप एक गलती कर देते हैं और हार जाते हैं, आपके शिक्षक ने आपको बिना किसी गलती के डांट दिया था और आप खुद को सही साबित नहीं कर पाए थे, आपकी गलती से आपके भाई को कैरियर में बहुत नुकसान हो गया, आपके बॉस ने आपकी सभी एम्प्लाइज के सामने बेइज्जती करदी…आदि आदि। अब हम बार बार उस घटना को याद करते हैं और खुद को उसमें जिताने के लिए व्यूह रचते, चालें सजाते हैं। हम खुद को बताना चाहते हैं कि मैं यह कहता तो वह चुप हो जाता, मैं वह न करता तो मेरे भाई का कैरियर आज कुछ और ऊंचाई पर होता, मैं यह करता तो मेरी जगह बॉस की बेइज्जती हो जाती…आदि आदि। आप खुद को जीताना चाहते हैं, क्योंकि हार हमें स्वीकार नहीं और हम यह भूल जाते हैं कि वह तो पास्ट था जो कि पास्ट है और वह अब कभी नहीं आएगा। ऐसी ही ज़िन्दगी की कई घटनाएं जो हमें बार बार हारा हुआ मासूम योद्धा और दूसरों को क्रूर विजेता बताती हैं। आप खुद को और दूसरों को दोष देने लगते हैं। आपका यह दोष देना आपके लिए घातक है। यह आपके विकास को रोकता है, आपको दुःखी रखता है, आपकी खुशियों को नष्ट करता है, आपके मित्रों और रिश्तों को खत्म करता है। प्रिय पाठकों दोषारोपण या ब्लेम आपके लिए किसी भी एंगल से फायदेमंद नहीं है…न खुद पर और न दूसरों पर।

यदि आपको जीवन में विकास करना है और खुश रहना है तो खुद को और दूसरों को दोष देना बंद कीजिए, बंद कीजिए ये रोतलु पन, बंद कीजिए दूसरों से उम्मीद लगाना, बंद कीजिए ये रिश्तों और मित्रता का कत्ल करना।

आप क्या करें- दोष देने की जगह उन घटनाओं से कुछ सीखें और उसे बना लें अपना अनुभव। जब आपके सामने ऐसी ही स्थिति भविष्य में वापस आये तो आप फिर गलती न करें। यह दोषारोपण या ब्लेम करने की जगह ज्यादा अच्छा और लाभदायक सिद्ध होगा क्योंकि अनुभव आपको विजेता या सफल बनाते हैं। जब अनुभव आपके पास होंगे तो आप दोषी की जगह अनुभवी व्यक्ति बन जाएंगे तथा अनुभवी व्यक्ति खुश, सफल और स्वस्थ होते हैं।


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कॉपर या तांबा जब ज़रूरत से ज्यादा शरीर मे चला जाता है तो क्या आप जानते हैं उससे क्या होता है? तांबा शरीर में जब बहुत ज्यादा मात्रा में पहुंच जाए तो उससे होती है एक क्रूर बीमारी ‘विल्सन डिजीज’। मैंने अपने जीवन मे इसके कई रोगी देखे हैं… जिनकी मृत्यु के दिन बहुत ही क्रूर और लंबे थे। यह रोग लिवर सिरोसिस, किडनी डैमेज, ब्रेन डैमेज, नसों का खराब हो जाना और कॉपर का आंखों में जमा होकर आंखों को खराब कर देना इन सब समस्याओं का समूह है। इस बीमारी का रोगी दिन रात मरता है। कुछ भाग्यशाली रोगी अच्छा इलाज मिलने से ठीक भी हो जाते हैं लेकिन अधिकांश के भाग्य में कब्र और चिताएं ही लिखी होती हैं।

क्या आपको पता है कि मैं आज आपको यह क्यों बता रहा हूँ? हाँ, इसलिए कि इस बीमारी से बचने के लिए ही तमिलनाडु के तूतीकोरिन के जागरूक नागरिक स्वयं को और आने वाली पीढ़ियों को इस जानलेवा बीमारी से बचाने के लिए वेदांता की स्टरलाइट यूनिट के कॉपर प्लांट से फैलने वाले प्रदूषण के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे और हमारी सरकार ने उन पर बेरहमी से गोलियां चलाई। ऐसे जैसे वे कोई आतंकवादी वारदात को अंजाम देने आए थे। एक बच्ची के मुंह में रिवॉल्वर ठूंस कर गोली मारी गई…बहुत निर्दयता पूर्वक, अमानवीय। वे अपना जीवन, अपने बच्चों का जीवन और स्वास्थ्य मांगने ही तो आए थे। जिसकी रक्षा करने की जिम्मेदारी उन्हें संविधान और प्रत्येक धर्म देता है।

100 दिन से प्रदर्शन कर रहे इन लोगों पर किसी का भी ध्यान नहीं गया। न मीडिया का, न सरकार का और न हमारा। आखिर क्यों जाता हम लड़ने, झगड़ने, नफ़रतें फैलाने और आईपीएल तमाशा देखने में जो व्यस्त हैं। असल मुद्दा तो यह है प्रदूषण जो रोज़ाना हज़ारों की जान ले रहा है। मैं साम्प्रदायिक हिंसाओं के भी सख्त खिलाफ हूँ लेकिन सच कहूँ तो उससे बहुत कम जाने जाती है। अगर हिसाब लगाया जाए तो एक वर्ष की साम्प्रदायिक हिंसा से ज्यादा जानें प्रदूषण मात्र एक घंटे में ले रहा है। कैंसर, किडनी डैमेज, लिवर डैमेज, पैरालिसिस, हार्ट अटैक रोज़ाना हम देशवासियों को कत्ल कर रहे हैं लेकिन हम सब सो रहे हैं। याद रखे पूंजीवाद के बाद सभी देश और देश की सरकारें एक व्यापारी की तरह व्यवहार करने लगे हैं और व्यापारियों के हितों के लिए फैसले लेते हैं। व्यापारी ही अपने हितों के अनुसार सरकार बना रहे हैं और उन्हीं के लोग सरकारों की नीतियों का निर्माण कर रहे हैं। यहां आपका और हमारा हित कहीं है ही नहीं अगर थोड़ा बहुत है तो वह सिर्फ एक उपभोक्ता होने के नाते है, अन्यथा हम कोई हैसियत नहीं रखते। हमें लड़ाया जाता है, ध्रुवीकृत और बांटा जाता है ताकि हम मूल समस्याओं से बेपरवाह रहें और यह सब यक़ीन मानिये पहले से निर्धारित है।

आओ प्रदूषण के खिलाफ उठ खड़े हो, खुद को और बाकी इंसानों और जन्तुओं और पृथ्वी को बचाने के लिए। जो 11 लोग पुलिस फायरिंग में निर्दयता पूर्वक मारे गए हैं आओ उन्हें शहीद का दर्जा दें क्योंकि वे वाकई शहीद हुए हैं।


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हम मनुष्य हैं और जीवन में कई बार घातक, बुरी और जानलेवा स्थिति से दो चार हो जाते हैं। बहुत ही घातक और तनावपूर्ण स्थिति में हम जड़ हो जाते हैं, लगभग मृत जैसे। आपके साथ कभी ऐसा हुआ भी होगा एक या अनेक बार या आपने सुना होगा कि एक व्यक्ति का एक्सीडेंट हुआ लेकिन उसे एक्सीडेंट से थोड़ी पहले तो सब पता था लेकिन फिर क्या हुआ कुछ पता नहीं। या किसी संभावित मृत्य के पल के समय हम एकदम जड़ हो गए थे और हमें अस्पताल में होश आया, कई बार किसी प्रियजन की मृत्यु की खबर सुनकर भी लोग एकदम जड़ हो जाते हैं, कई बार घातक और जानलेवा स्थिति जैसे हथियार लेकर खड़े हत्यारे को सामने देखकर हम सुन्न होकर बस खड़े रह जाते हैं कुछ भी नहीं कर पाते…आखिर ऐसा क्यों होता है? इसकी वजह है कुदरत का रहम। प्रकृति नहीं चाहती कि हम एक दर्दनाक मौत मरे या बहुत ही घातक स्थिति के समय हमें कोई दर्द हो या बहुत ही बुरी परिस्थिति में हमारे मस्तिष्क को कोई क्षति पहुंचे। इसलिए हम शून्य या सुन्न हो जाते हैं बिल्कुल निर्जीव की तरह। आपने कई बार टीवी पर देखा होगा कि किसी शिकारी जानवर के सामने शिकार अपने होश खो देता है और मृत दिखने लगता है, लेकिन थोड़ी देर बाद वह फिर से जीवित होकर दौड़ लगाकर भाग जाता है, जान बचाकर। प्रकृति ने सभी जीवो को दर्दनाक मौत, हादसे और घटनाओ से बचने के लिए यह ट्रिक दी है…उनके लिए यह एक त्वरित और प्राकृतिक एनेस्थेसिया है।

यदि हम जीवित बच जाते हैं और अपने मस्तिष्क को उसी वक़्त समझा लेते हैं कि अब वह घातक स्थिति जा चुकी है और लौटकर नही आएगी तो उसी समय हमारा शरीर कांपकर और गहरी गहरी सांस लेकर उस एनर्जी को रिलीज करदेता है। लेकिन अगर हम उसे रिलीज़ नहीं करते तो वह नकारात्मक ऊर्जा हमारे शरीर मे ही रह जाती है और हमारे जीवन में डर, निराशा और अवसाद पैदा करती है। हम दुःखी रहने लगते हैं, हमें जीवन मे अब आनंद नहीं आता, हम बदल जाते हैं हंसमुख से रोतलु हो जाते हैं, जिंदादिल से डरपोक और मुर्दादिल हो जाते हैं, सकारात्मक से नकारात्मक और आशावादी से निराशावादी बन जाते हैं।

हमें इससे बचने के लिए यह करना चाहिए कि उन बातों को एक एक करके शांति से एकांत में ध्यान से याद करके अपने मन, मस्तिष्क से निकाल कर बाहर कर देना चाहिए यह कहते हुए कि वह बात हो चुकी है और अब उनका कोई औचित्य नहीं है और भविष्य में वह फिर घटित नहीं होगी। जब आप ऐसा करेंगे तो वही व्यक्ति, डर या परिस्थितियां आपके मस्तिष्क के सामने आजाएँगे और आप कांपने लगेगे, थोड़ा या ज्यादा। इस कंपन को अपना मित्र समझो और इसे निर्बाध और अनवरत होने दो। जब आप अपने मन को समझा लेंगे कि अब कोई खतरा नहीं है तो फिर यह कम्पन बन्द हो जाएंगे और आप फिरसे खुश, स्वस्थ, सुंदर और ऊर्जावान बन जाएंगे…वैसे ही जैसे आप हकीकत में हैं।


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एक पिता अपनी संतानों से प्रेम और सम्मान पा ही नहीं सकता यदि उसका व्यवहार अपनी पत्नी के प्रति क्रूरतापूर्ण हो। यह हम इंसानों का आदिम विकास और मनोवैज्ञानिक पहलू है कि हम सबसे ज्यादा जुड़ाव, लगाव और प्रेम अपनी माँ से ही महसुस करते हैं। हमारी माँ का जो सम्मान करता है वह हमारे लिए सम्मानीय बन जाता है और जो हमारी माँ के साथ बुरा सुलूक करता है वह हमारा शत्रु बन जाता है। यदि आप अपने बच्चों से बहुत प्रेम करते हैं, उनपर जान लुटाते हैं, उनकी हर ख्वाहिश पूरी करते हैं, उनके सपने साकार करने में दिन रात जुटे रहते हैं फिर भी वे आपसे प्रेम नहीं करते, वे आपसे बात करना भी पसंद नहीं करते न आपकी कोई परवाह उन्हें हैं तो इसकी सबसे ज्यादा संभावना है कि आपका उनकी माँ के साथ व्यवहार ठीक नहीं है। आप अपनी पत्नी को प्रेम करेंगें, उसे सम्मान देंगे और उसकी परवाह करेंगें तो बदले में आपके बच्चे भी आपसे प्रेम करने लगेंगे चाहे आप उन्हें ज्यादा प्रेम और ज्यादा परवाह न भी करते हो तो भी। अपने बच्चों की माँ को सम्मान और प्रेम दिए बिना आप अपने बच्चों के दिल में जगह बना ही नहीं सकते चाहे इसके लिए आप अपना सबकुछ न्योछावर ही क्यों न कर दें उनके सामने। आदिमविकास के दौरान औरत का काम अपने बच्चों को पालना, घर को बनाना और उन्हें भोजन पका कर देना था। भोजन पकाने और बच्चों के लालन पालन की जिम्मेदारी माँ की थी और भोजन इकट्ठा कर के लाने की जिम्मेदारी पिता की। बच्चे बचपन का अधिकांश समय माँ के साथ ही बिताते हैं इसलिए वे भावनात्मक रूप से माँ के ज्यादा नज़दीक होते हैं और गर्भनाल से 9 माह का जुड़ाव तो माँ के अलावा किसी और से संभव ही नहीं है। यह सब मिलकर हमें माँ से सबसे ज्यादा लगाव रखने वाले बच्चे बना देते हैं। तो यदि आप वाकई चाहते हैं कि आपकी संतान आपसे बहुत सारा प्रेम और आपका सम्मान करें तो आपको चाहिए कि आप उनकी माँ के साथ अच्छा बर्ताव करें…हाँ, अभी से।


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